Book Title: Tulsi Prajna 1995 01
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 83
________________ व्यापार को शुद्ध करना है । यह मानव स्वभाव का शाश्वत तत्त्व है। यह मानव के अन्दर की व्याकुलता है जिसे समाप्त करने के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए हम तैयार रहते हैं। धर्म मानव को सृष्टिकर्ता, सत्य या ईश्वर या आत्मा के साथ जोड़ता है। गांधी द्वारा प्रतिपादित धर्म के उपर्युक्त अर्थों को देखने से स्पष्ट होता है कि गांधी का धर्म पंथिक धर्म नहीं, नैतिक धर्म है । सच्चा धर्म और सच्ची नैतिकता एक दूसरे से जुड़े होते हैं । जिस प्रकार पौधों के विकास के लिए मिट्टी का सिंचन, आवश्यक है उसी प्रकार धर्म के विकास के लिए नैतिकता रूपी जल की आवश्यकता होती है। वह सभी धर्म गांधी की दृष्टि में त्याज्य है जिसके पीछे विवेक और नैतिकता का आधार प्राप्त नहीं है । अतः गांधी ने हर धर्म का अध्ययन नैतिक विकास की दृष्टि से करने की सलाह दी। उनका मानना था कि प्रत्येक धर्म एक ही गन्तव्य (सच्चे धर्म) तक पहुंचने के विविध मार्ग है । अतः हमें सभी धर्मों का सम्मान के साथ अध्ययन करना चाहिए। अपने धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मों के गहरे अध्ययन से हमें सभी धर्मों की एकता का गहरा अनुभव प्राप्त होगा और सांप्रदायिकता के विकास समाप्त हो जाएंगे। अतः गांधी के धार्मिक शिक्षक में सर्वधर्म समभाव का सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। ___ आत्मानुभूति, ब्रह्मानुभूति अथवा सत्यानुभूति, गांधी प्रणीत धर्म का साध्य है और अहिंसा उसका साधन । गांधी की दृष्टि में मानव जीवन का चरम लक्ष्य आत्मानुभूति प्राप्त करना है जिसका तात्पर्य है ईश्वर का साक्षात् दर्शन करना जो निरपेक्ष सत्य की प्राप्ति अथवा मोक्ष कहा जा सकता है। इसलिए मोक्ष ही शिक्षा का घरम उद्देश्य है । गांधीजी ने विद्यार्थियों से कहा कि उनका लक्ष्य एक सच्चा ब्रह्मचारी बनना है और सच्चा ब्रह्मचारी वह है जो ईश्वर की खोज करता है । ईश्वर कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो इस संसार से परे कहीं अलग निवास करता हो और मानव की प्रशंसा और स्तुति का विषय हो । उनकी दृष्टि में सत्य ही ईश्वर है और सत्य अणु-अणु में व्याप्त है और इस लोक से परे भी है। वह विश्व का विशाल नियम भी है और गांधी की दृष्टि में नियम और नियामक में कोई भेद नहीं। इसलिए धर्म का लक्ष्य सृष्टि के व्यापक नियमों को जानना है और उन्हें जानकर अपने आचरणों का विकास करना है । जब हम सापेक्ष और निरपेक्ष नियमों को जान लेते हैं तब हम सारे दुःखों से मुक्त हो जाते हैं। हमें सच्ची स्वतंत्रता प्राप्त होती है जो शिक्षा का लक्ष्य गांधी के अनुसार शिक्षा वह है जो हमें मुक्ति दिलाती है-“सा विद्या या विमुक्तये ।" परन्तु गांधी की दृष्टि में मुक्ति का अर्थ केवल आध्यात्मिक मुक्ति नहीं है। वे मुक्ति को समग्र दृष्टि से लेते हैं। मुक्ति में आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक सभी प्रकार की स्वतंत्रताएं सम्मिलित हैं। इसलिए गांधी की दृष्टि में शिक्षा का अभिप्राय है ---सर्वांग रूप से स्वतन्त्रता के सभी मूल्यों को जीवन में सिद्ध करना । हमारी शिक्षा इसी मूल्य की सिद्धि का साधन है। प्रश्न है कि सत्य और स्वतंत्रता या ब्रह्मांड के नियमों को कैसे अनुभूत किया जा ३३० तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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