Book Title: Tulsi Prajna 1975 07 Author(s): Mahavir Gelada Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 8
________________ रामायण पढ़ी जाती थी। रामभक्त जीवन-सूत्र : रामानन्दी साधु राम के पीछे जिस प्रकार स्वयंभू के समय में ब्राह्मण, बौद्ध पड़े थे, उससे यह बिल्कुल सम्भव है कि तथा जैन धर्म ही भारत के प्रधान धर्म उन्हें जैनों के यहां इस रामायण का पता थे। तुलसी के युग में इस्लाम का राजलग गया हो। यह यद्यपि गोस्वामी जी नैतिक प्रभुत्व था। से आठ सौ बरस पहले बना था किन्तु स्वयंभू के जीवन काल के विषय तद्भव शब्दों के प्राचुर्य तथा लेखकों- में पर्याप्त मतभेद है। राहुल जी ने वाचकों के जब - तब के शब्द-सुधार के उनका जीवन-काल नवम शताब्दी के कारण भी आसानी से समझ में आ सकता पूर्वार्द्ध में माना है जबकि डा० भायाणी था। (हिन्दी काव्य-धारा)। ने उन्हें नवम् शताब्दी के उत्तरार्द्ध में __डा० नेमिचन्द शास्त्री (हिन्दी-जैन माना है। डा. नेमिचन्द्र शास्त्री ने साहित्य-परिशीलन, भाग १) का भी उनका जन्म सन् ७७० बताया है। अभिमत है कि हिन्दी साहित्य के अमर तुलसी का जीवनकाल सन् १५३२-१६२३ कवि तुलसीदास पर स्वयंभू की 'पउम की कालावधि को घेरता है । 'पउम चरिउ' और 'भविसयतकहा' का अमिट चरिउ' सन् ८५०-६० के मध्य लिखा प्रभाव पड़ा है। इतना सुनिश्चित है कि गया था जबकि 'रामचरित मानस' सन् 'रामचरित मानस' के अनेक स्थल स्वयंभू १५७४-१५७७ में लिखा गया था । की 'पउम चरिउ'-रामायण से अत्यधिक तुलसी की धर्मपत्नी रत्नावली प्रभावित हैं तथा स्वयंभू की शैली का के समान स्वयंभू की दो पत्नियां थीं जो तुलसीदास ने अनेक स्थलों पर अनुकरण कि सुशिक्षिता तथा काव्य प्रेमी थी। किया है। प्रथम पत्नी सामिअब्बा ने कवि को विद्या घर काण्ड लिखने में मदद की थी। इसके विपरीत डा० उदयभानु द्वितीय पत्नी आइच्चम्बा ने स्वयंभू को सिंह (तलसी-काव्य-मीमांसा) का अभिमत अयोध्याकाण्ड लिखने में सहयोग दिया है कि ब्राह्मण-परम्परा में लिखित ग्रन्थ था। उनके एकमेव पुत्र त्रिभुवन ने उनकी ही तुलसी-साहित्य के स्रोत हैं। कुछेक तीन कृतियों के अंतिम अंशों को पूर्ण स्थलों पर बौद्ध-जैन राम • कथाओं से किया था और वह स्वयं को 'महाकवि' तुलसी-वणित-रामचरित का सादृश्य देख कहता हुआ अपने पिता के सुकवित्व का कर यह अनुमान कर लेना ठीक नहीं है उत्तराधिकारी घोषित करता था। उसने कि तुलसी ने उनसे प्रभावित होकर 'पंचमी चरिउ' ग्रन्थ को लिखा था । वस्तु-ग्रहण किया है। दोनों के दृष्टिकोण तुलसी उत्तर भारतवासी थे जबकि स्वमें तात्विक भेद है। बौद्ध और जैन । यंभू दक्षिणात्य । तुलसी उत्तर भारत का अनीश्वरवादी, वेदनिंदक एवं ब्राह्मण- . अधिक वर्णन करते थे जबकि स्वयंभू दक्षिण व्यवस्था के विरोधी हैं। इसके प्रतिकूल- भारत के । स्वयंभू अपने वर्णन में विन्ध्यातुलसीदास ईश्वर आदि के परम चल से आगे कम ही बढ़ते थे। वस्तुतः निष्ठावान हैं। स्वयंभू विदर्भ-वासी थे। तुलसी प्रज्ञा-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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