Book Title: Tulsi Prajna 1975 07
Author(s): Mahavir Gelada
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 7
________________ जैन रामायण 'पउमचरिउ' और हिन्दी रामायण 'मानस' डा. लक्ष्मीनारायण दुबे प्रभाव-सूत्र : जैन रामायण 'पउम चरिउ' ( पउमचरित्र ) के रचयिता महाकवि स्वयंभू थे और हिन्दी रामायण 'रामचरितमानस' के महान् स्रष्टा गोस्वामी तुलसीदास थे। स्वयंभू अपभ्रश के वाल्मीकि थे तो तुलसी अवधी के। स्वयंभू के मूल स्रोत वाल्मीकि थे और तुलसी के भी वे ही थे । स्वयंभू ने जिन कवियों का गुण-गान किया था, उनमें अपभ्र श के कवि सिर्फ चतुर्मुख हैं जिनका कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। चतुर्मुख का उल्लेख हरिषेण, पुष्पदंत और कनकामर ने भी किया था । तुलसी ने स्वयंभू की कहीं कोई चर्चा नहीं की है परन्तु महापण्डित राहुल सांकृत्यायन ने लिखा है : मालूम होता है, तुलसी बाबा ने स्वयंभू-रामायण को जरूर देखा होगा, फिर आश्चर्य है कि उन्होंने स्वयंभू की सीता की एकाध किरण भी अपनी सीता में क्यों नहीं डाल दी। तुलसी बाबा ने स्वयंभू-रामायण को देखा था, मेरी इस बात पर आपत्ति हो सकती है, लेकिन मैं समझता हूं कि तुलसी बाबा ने 'क्कचिदन्यतोपि' से स्वयंभू-रामायण की ओर ही संकेत किया है । आखिर नाना पुराण, निगम, आगम और रामायण के बाद ब्राह्मणों का कौन-सा ग्रन्थ बाकी रह जाता है, जिसमें राम की कथा आयी है। 'क्कचिदन्यतोपि' से तुलसी बाबा का मतलब है, ब्राह्मणों के साहित्य से बाहर 'कहीं अन्यत्र से भी' और अन्यत्र इस जैन ग्रन्थ में रामकथा बड़े सुन्दर रूप में मौजूद है । जिस सोरों या सूकर क्षेत्र में गोस्वामी जी ने राम की कथा सुनी, उसी सोरों में जैन-घरों में स्वयंभू तुलसी प्रज्ञा-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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