Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4 Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani Publisher: Prakrit Bharti Academy View full book textPage 4
________________ प्रकाशकीय अप्रतिम-प्रतिभा-धारक, कलिकाल-सर्वज्ञ, परमार्हत् कुमारपाल प्रतिबोधक, स्वनामधन्य श्री हेमचन्द्राचार्य रचित त्रिषष्टिशलाका-पुरुष चरित का पंचम एवं षष्ठ पर्व, भाग-4 के रूप में प्राकृत भारती की पुष्प संख्या 84 के रूप में प्रस्तुत करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता हो रही है । त्रिषष्टि अर्थात् तिरेसठ, शलाका पुरुष अर्थात् सर्वोत्कृष्ट महापुरुष । सृष्टि में उत्पन्न हुए या होने वाले जो सर्वश्रेष्ठ महापुरुष होते हैं वे शलाका-पुरुष कहलाते हैं। इस कालचक्र के उत्सपिणी और अवसर्पिणी के प्रारकों में प्रत्येक काल में सर्वोच्च 63 पुरुषों की गणना की गई है, की जाती थी और की जाती रहेगी। इसी नियमानुसार इस अवसर्पिणी में 63 महापुरुष हुए हैं, उनमें 24 तीर्थङ्कर, 12 चक्रवर्ती, 9 वासुदेव, 9 प्रतिवासुदेव और 9 बलदेवों की गणना की जाती है। इन्हीं 63 महापुरुषों के जीवन-चरितों का संकलन इस' 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित' के अन्तर्गत किया गया है। प्राचार्य हेमचन्द्र ने इसे 10 पर्यों में विभक्त किया है जिनमें ऋषभदेव से लेकर महावीर पर्यन्त 63 महापुरुषों के जीवमचरित संगृहीत है। प्रथम पर्व में 6 सर्ग हैं, जिनमें भगवान ऋषभदेव एवं भरत चक्रवर्ती का जीवनचरित गुफित है। द्वितीय पर्व में भी 6 सर्ग हैं, जिनमें भगवान अजितनाथ एवं द्वितीय चक्रवर्ती सगर का सांगोपांग जीवनचरित है। ये दोनों पर्व दो भागों में हिन्दी अनुवाद के साथ प्राकृत भारती के पुष्प 62 एवं 77 के रूप में प्राकृत भारती द्वारा प्रकाशित किए जा चुके हैं । तृतीय भाग में पर्व 3 और 4 संयुक्त रूप से प्रकाशित हो चुके हैं। तृतीय पर्व में 8 सर्ग हैं जिनमें क्रमशः भग. संभवनाथ से लेकर दसवें भगवान शीतलनाथ के जीवनचरित हैं। चतुर्थ पर्व में ग्यारहवें तीर्थङ्कर श्रेयांसनाथ से लेकर 15वें तीर्थङ्कर धर्मनाथ तक, तीसरे-चौथे चक्रवर्ती, 5 वासुदेव, 5 बलदेव और 5 प्रतिवासुदेवों का विस्तृत जीवनचरित है। यह तीसरा भाग भी प्राकृत भारती की ओर से मार्च, 1992 में प्रकाशित हो चुका है। प्रस्तुत चतुर्थ भाग में पर्व 5 और 6 संयुक्त रूप से प्रकाशित किए जा रहे हैं। पांचवें पर्व में 5 सर्ग हैं, जिनमें सोलहवें तीर्थङ्कर एवं पंचम चक्रवर्ती भगवान शान्तिनाथ का सविशद जीवन वर्णित है। प्रथम सर्ग में भगवान शान्तिनाथ के पूर्व के पांच भवों, दूसरे सर्ग में छठे-सातवें भव का, तीसरे सर्ग में पाठवें-नवें भव का, चतुर्थ सर्ग में दसवें भव में मेघरथPage Navigation
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