Book Title: Tirthankar Bhagawan Mahavir
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 8
________________ (७) सिद्धार्थ की रानी त्रिशला के उदर से कुण्डग्राम में हुआ था। उनकी माँ वैशाली गणतन्त्र के अध्यक्ष राजा चेटक की पुत्री थीं। वे आज से २६०० वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन नाथवंशीय क्षत्रिय कुल में जन्मे थे। ____महावीर का नाम उनके माता-पिता ने उनको नित्य वृद्धिंगत होते देख वर्द्धमान रखा। उनके जन्म का उत्सव उनके माता-पिता व परिजन-पुरजनों ने तो बहुत उल्लास के साथ मनाया ही था, साथ ही भावी तीर्थंकर होने से इन्द्रों और देवों ने भी आकर महान् उत्सव किया था, जिसे जन्मकल्याणोत्सव कहते हैं। इन्द्र उन्हें ऐरावत हाथी पर बैठाकर सुमेरु पर्वत पर ले गये और वहाँ पाण्डुकशिला पर बड़े ही ठाटबाट से उनका जन्माभिषेक किया, जिसका विस्तृत विवरण जैन पुराणों में उपलब्ध है। ____ बालक वर्द्धमान जन्म से ही स्वस्थ, सुन्दर एवं आकर्षक व्यक्तित्व वाले बालक थे। वे दोज के चन्द्र की भांति नित्य वृद्धिंगत होते हुए अपने वर्द्धमान नाम को सार्थक करने लगे। उनकी कंचनवर्णी काया अपनी कांति से सबको आकर्षित करती थी। उनके रूप-सौंदर्य का पान करने के लिए सुरपति इन्द्र ने हजार नेत्र बनाए थे। वे आत्मज्ञानी, विचारवान्, विवेकी और निर्भीक बालक थे। डरना तो उन्होंने सीखा ही न था। वे साहस के पुतले थे। अतः उन्हें बचपन से ही वीर, अतिवीर कहा जाने लगा था। आत्मज्ञानी होने से उन्हें सन्मति भी कहा जाता था। उनके पांच नाम प्रसिद्ध हैं - वीर, अतिवीर, सन्मति, वर्द्धमान और महावीर । वे प्रत्युत्पन्नमति थे और विपत्तियों में अपना सन्तुलन नहीं

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