Book Title: Tirthankar Bhagawan Mahavir
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ (२०) हुआ है, इतिहास इसका साक्षी है | जब-जब धार्मिक आग्रह सहिष्णुता की सीमा को लांघ जाता है; तब-तब वह अपने प्रचार व प्रसार के लिए हिंसा का आश्रय लेने लगता है। धर्म का यह दुर्भाग्य ही कहा जायगा कि उसके नाम पर रक्तपात हुए और वह भी उक्त रक्तपात के कारण विश्व में घृणा की दृष्टि से देखा जाने लगा। __इसप्रकार जिस धर्मतत्त्व के प्रचार के लिए हिंसा अपनाई गई, वही हिंसा उसके हृास का कारण बनी। किसी का मन तलवार की धार से नहीं पलटा जा सकता। अज्ञान ज्ञान से कटता है, उसे हमने तलवार से काटने का यत्न किया। विश्व में नास्तिकता के प्रचार में इसका बहुत बड़ा हाथ है। __भगवान महावीर ने उक्त तथ्य को भली प्रकार समझा था। अतः उन्होंने साध्य की पवित्रता के साथ-साथ साधन की पवित्रता पर भी पूरा-पूरा जोर दिया। अनेकान्तात्मक विचार, स्याद्वादरूप वाणी, अहिंसात्मक आचार एवं अपरिग्रही जीवन-ये चार महान सिद्धान्त तीर्थंकर महावीर की धार्मिक सहिष्णुता के प्रबल प्रमाण हैं। __ सहिष्णुता के बिना सह-अस्तित्व संभव नहीं है; क्योंकि संसार में अनन्त प्राणी हैं और उन्हें इस लोक में साथ-साथ ही रहना है। यदि हम सब ने एक-दूसरे के अस्तित्व को चुनौती दिये बिना रहना नहीं सीखा तो हमें निरन्तर अस्तित्व के संघर्ष में जुटे रहना होगा। संघर्ष अशान्ति का कारण है और उसमें हिंसा अनिवार्य है। हिंसा प्रतिहिंसा को जन्म देती है। इसप्रकार हिंसा-प्रतिहिंसा का कभी समाप्त न होने वाला चक्र चलता रहता है। यदि हम शान्ति से रहना चाहते हैं तो हमें दूसरों के अस्तित्व के प्रति

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25