Book Title: Tirthankar Bhagawan Mahavir
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 7
________________ (६) आयुधों से दूसरों को जीतने में उन्हें जीत दिखाई नहीं दी । उनका विचार था कि अपने अन्तर में उठने वाली मोह-राग-द्वेष की वृत्तियों को जीतना ही सच्ची जीत है। ___ अतः उन्होंने अन्तरोन्मुखी वृत्ति द्वारा मोह-राग-द्वेष का अभाव कर ज्ञान का पूर्ण विकास करना ही अपना लक्ष्य बनाया और उस दिशा में अपूर्व पुरुषार्थ भी किया । फलतः वे पूर्ण वीतरागी और सर्वज्ञ बने तथा भगवान कहे जाने लगे। __ जो वीतरागी और सर्वज्ञ हो वही भगवान है। बिना पूर्ण ज्ञान प्राप्त किए और वीतरागी बने कोई भगवान नहीं हो सकता। जैन मान्यतानुसार भगवान जन्मते नहीं, बनते हैं | जन्म से कोई भगवान नहीं होता। महावीर भी जन्म से भगवान न थे। जन्म के समय तो वे हम और आप जैसे मानव ही थे। भगवान तो वे बाद में बने, जब उन्होंने अपने को जीता। मोह-राग-द्वेष को जीतना ही अपने को जीतना है। ___ उन्होंने स्वयं कहा है - अपने को जीत लिया तो जग जीत लिया और अपने को जान लिया तो जग जान लिया। भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त जितने गूढ़, गंभीर व ग्राह्य हैं; उनका जीवन उतना ही सादा, सरल एवं सपाट है; उसमें विविधताओं को कोई स्थान प्राप्त नहीं। उनकी जीवन-गाथा मात्र इतनी ही है कि वे आरंभ के तीस वर्ष वैभव और विलास के बीच जल से भिन्न कमलवत् रहे। बीच के बारह वर्ष जंगल में परम मंगल की साधना में एकान्त आत्मआराधना-रत रहे और अन्तिम ३० वर्ष प्राणिमात्र के कल्याण के लिए सर्वोदय तीर्थ का प्रवर्तन, प्रचार व प्रसार करते रहे। महावीर का जन्म वैशाली गणतन्त्र के प्रसिद्ध राजनेता राजा

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