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फिर स्वस्थ होने पर पुन: पूज्य माताजी ने दो तीन मास पूर्व चलाकर मुझे लिखा कि अब ग्रंथ भेज दीजिए अब स्वास्थ्य आदि की अनुकूलता है, अतः अनुवाद कर लूंगी। मैंने पुनः बहीं से प्रति मंगवाकर संघ में भेज दी और माताजी ने अनुवाद कार्य सम्पन्न किया। यह प्रथम बार हिन्दी अनुवाद पूज्या माताजी द्वारा हुआ है ।
अनुवादिकाश्री का परिचय :
पूज्य माताजी निमतीजी का जन्म फा० शु० १५ सं० १९९० को म्हसवड़ ग्राम' (जिलासातारा, महाराष्ट्र ) में हुआ । आपका जन्म नाम प्रभावती था। आपके पिता श्री फूलचन्द्रजी जैन और माता श्रीमती कस्तुरीदेवी थी ।
प्रति पुण्य संयोग की बात है कि सन् १९५५ में प्रार्यिकारत्न श्री ज्ञानमति माताजी ने म्हसवड़ में चातुर्मास किया । चातुर्मास में अनेक बालिकायें माताजी से द्रव्यसंग्रह, तत्त्वार्थ सूत्र, कातन्त्र व्याकरण आदि ग्रंथों का अध्ययन करती थीं । उस समय २१ वर्ष वयस्क सुश्री प्रभावती भी उन अध्येत्री बालाओं में से एक थी ।
प्रभावती ने वैराग्य से श्रोतप्रोत होकर सन् १९५५ में ही दीपावली के दिन पू० ज्ञानमती माताजी से १० वीं प्रतिमा के व्रत ले लिए। पत्पश्चात् पू. प्रा. वीरसागरजी के संघ में वि. सं. २०१२ में क्षुल्लक दीक्षा ली - देह का नामकरण किया था 'जिनमती'। इस क्षुल्लिका अवस्था में आपके चातुर्मास क्रमश: जयपुर, जयपुर, ब्यावर, अजमेर, सुजानगढ़ व सीकर इस तरह छह स्थानों पर हुए ।
सन् १९६१ तदनुसार का. शु. ४ वि. सं. २०१६ में सीकर ( राज० ) के चातुर्मास - काल में प्रा० शिवसागरजी महाराज से क्षु. जिनमती ने स्त्रित्व के चरमसोपानरूप प्रार्थिका व्रत ग्रहण किया । श्रार्थिका अवस्था में पू. जिनमतिजी ने प्रथम चातुर्मास प्रा. शिवसागरजी के संघ में रहते हुए लाडनू में किया। फिर आर्थिका ज्ञानमतिजी, आदिमतिजी, पद्मावतीजी व क्षु. श्रेष्ठमतिजी के साथ कलकत्ता, हैदराबाद, श्रवरण बेलगोला, सोलापुर तथा सनावद इन ५ स्थानों पर यथाक्रम चातुर्मास किए । पुन: प्रा. शिवसागरजी के संघ में सम्मिलित होकर प्रतापगढ़ चातुर्मास किया। संघ यहां से महावीरजी पहुंचा, जहां प्रा. शिवसागरजी की समाधि हो गई और धर्मसागरजी महाराज आचार्य पद से अलंकृत किया ।
इसके बाद संघ के साथ जयपुर, टोंक, अजमेर, लाडनूं, सीकर, देहली, सहारनपुर, बड़ौत, किशनगढ़, उदयपुर, सलूम्बर, केशरियाजी, पाडवा, लुहारिया, प्रतापगढ़ व अजमेर यथाक्रम
१. म्हसवड सोलापुर के पास हैं ।