Book Title: Tao Upnishad Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 13
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free पथ नहीं; जो भी नाम है, वह नाम नहीं; तो आपकी समझ में...| सीधा अर्थ इतना ही है: दैट व्हिच इज़ ए वे इज नॉट ए वे एट ऑल, दैट व्हिच इज़ ए नेम इज़ नॉट ए नेम एट ऑल! यही कह रहा है वह। वह यही कह रहा है, पहुंचना हो तो पथ से बचना, नहीं तो भटक जाओगे। और जानना हो उसे, पुकारना हो उसे, तो नाम भर मत लेना, नहीं तो चूक जाओगे। और उसके संबंध में इंच भर की चूक अनंत चूक है। कोई इंच भर की चूक छोटी चूक नहीं है; बड़ी से बड़ी चूक है, हो गई। मारपा के सामने एक युवक आकर बैठा है। वह तीन वर्ष से मारपा के पास है। और मारपा से कह रहा है, रास्ता बताइए। कुछ उसका पता-ठिकाना बताइए। कुछ नाम हो तो बोलिए। और जब भी वह कहता है कि कुछ उसका पता-ठिकाना बताइए, तभी अगर मारपा बोलता भी है, तो एकदम चुप हो जाता है। वैसे बोलता रहता है। और जब भी वह युवक कहता है, कुछ पता-ठिकाना बताइए, अभी तो आप बोल ही रहे हैं, थोड़ा उसका भी, कि वह एकदम आंख बंद करके चुप हो जाता है। अगर मारपा का शिष्य पूछता है कि कोई तो रास्ता बताइए, तो वह चल भी रहा हो रास्ते पर तो एकदम खड़ा हो जाता है। तीन साल में परेशान हो गया। उसने कहा कि हद हो गई। वैसे आप थोड़ा चलते भी हैं, और जब भी मैं रास्ते की बात उठाता है कि एकदम ठहर जाते हैं। वैसे आप बोलते हैं, कोई एतराज आपको बोलने में नहीं है, लेकिन जैसे ही मैं उसकी खबर पूछता हूं कि आप आंख बंद करके ओंठ सी लेते हैं। और मैं उसी के लिए आया हं। न तो आपका बाकी चलना मुझे कोई प्रयोजन है, और न आपकी बाकी बातों से मुझे कोई मतलब है। लेकिन मारपा तो आंख ही बंद करके बैठ जाता है जब ऐसी बात छिड़ती है। आखिर एक दिन उस युवक ने कहा, अब मैं जाऊं? मारपा ने पूछा, तुम आए ही कब थे? तीन साल से तुम दरवाजे के बाहर ही घूम रहे हो। आते कहां भीतर? जाने की आज्ञा किससे लेते हो? मैंने एक क्षण को नहीं जाना कि तुम भीतर आए। कई बार मैं द्वार खोल कर खड़ा हो गया। कई बार रुक गया कि शायद मैं चलता हूं, इसलिए तुम प्रवेश न कर पाते होओ। तो मैं खड़ा हो गया। जब भी तुमने सवाल पूछा, मैंने तुम्हें जवाब दिया है। उस युवक ने कहा, हद्द हो गई। यही तो बेचैनी है कि जब भी मैंने सवाल पूछा, आप चुप रह गए हैं। ऐसे आप बोलते रहते हैं। यह भी इल्जाम मुझ पर आप लगा रहे हैं? इसीलिए तो मैं जाता हूं छोड़ कर तुम्हें कि जब भी मैंने पूछा, आप चुप रह गए हैं। मारपा ने कहा, वही था जवाब। काश, तुम भी उस वक्त चुप रह जाते! काश, जब मैं चलते-चलते ठहर गया था, तुम भी ठहर जाते! तो मिलन हो जाता हमारा। बताना है उसके संबंध में, तो मौन होना पड़ता है। चलाना है उसके संबंध में किसी को, तो खड़े हो जाना पड़ता है। उलटी दिखती हैं बातें, लेकिन ऐसा ही है। लाओत्से एक-एक कदम एक-एक चीज को गिराता चलेगा। उस जगह ले जाएगा आपको, जहां कुछ भी न बचे गिराने को। आप भी न बचें! खालीपन रह जाए। और खालीपन ही निर्विकार है। ध्यान रखें, जहां कुछ भी आया, वहीं विकार आ जाता है। शून्य के अतिरिक्त और कोई पवित्रता नहीं है। शून्य के अतिरिक्त और कोई निर्दोष, इनोसेंट स्थिति नहीं है। जरा सा कंपन एक विचार का, कि नरक के द्वार खुल जाते हैं। जरा सा एक रेखा का खिंच जाना मन में, और संसार निर्मित हो जाता है। जरा सी वासना की कौंध, और अनंत जन्मों का चक्कर शुरू हो जाता है। शून्य, बिलकुल शून्य; नहीं है कोई आकार उठता भीतर, नहीं कोई शब्द, नहीं कोई नाम, नहीं कोई मार्ग, नहीं कोई मंजिल, न कहीं जाना है, न कुछ पहुंचना है, न कुछ पाना है। ऐसी जब कोई स्थिति बनती है, तब ताओ प्रकट होता है। तब मार्ग प्रकट होता है। तब वह नाम सुना जाता है। तब वह अविकारी और सनातन नियम बोध में आता है। वह नियम, अराजकता जिसके विपरीत नहीं है; वह नियम, जो अराजकता को भी अपने गर्भ में समाए हुए है। किसी को भी पूछना हो सवाल तो पूछ लें। और कोई भी सवाल, क्योंकि सब सवाल एक से हैं। कुछ भी पूछ लें। एक मित्र पूछते हैं कि विचार चलते हैं और पीछे ऐसा भी लगता है कि थोड़ा निर्विचार हुआ और चारों तरफ विचार चलते रहते हैं और केंद्र पर कहीं कोई निर्विचार का भी खयाल होता है, और वह स्थिति जब कि सब विचार बंद हो जाते हैं, इन दोनों की बात पूछते हैं। जब तक विचार चलते हैं, तब तक निर्विचार का खयाल सिर्फ एक विचार है। जब तक विचार चलते हैं, तब तक निर्विचार का खयाल सिर्फ एक विचार है। वह भी एक विचार है कि मैं निर्विचार है; और इधर विचार चल रहे हैं, और मैं निर्विचार हैं। क्योंकि मैं निर्विचार हूं, इसकी स्थिति तो तभी स्मरण में आएगी, जब विचार नहीं चल रहे होंगे। और मजे की बात यह है कि यह जब स्थिति बनेगी, तब यह खयाल भी नहीं रहेगा कि मैं निर्विचार हूं। क्योंकि निर्विचार होने का खयाल एक विचार मात्र है। जैसे एक आदमी जब पूर्ण स्वस्थ होता है, तो यह भी पता नहीं रहता कि मैं स्वस्थ हूं। इस बात का पता कि मैं स्वस्थ हूं, बीमारी की खबर देता है। इसलिए अक्सर बीमार आदमी स्वास्थ्य की बात करते हुए देखे जाते हैं-स्वस्थ आदमी नहीं, बीमार आदमी। बीमारी बनी रहे किसी कोने पर, तो स्वास्थ्य का बोध बन सकता है। और कई दफा स्वास्थ्य का खयाल एक नई तरह की बीमारी ही सिद्ध होती है। अगर कोई आदमी स्वास्थ्य के प्रति बहुत सचेतन हो गया, तो रुग्ण हो जाता है। यह रोग है एक। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज

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