Book Title: Tao Upnishad Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 11
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free लाओत्से कहता है, एकरस नहीं है वह, जो हम बोल सकते हैं; जो आदमी उच्चारित कर सकता है, वह उसका नाम नहीं है। अंतिम रूप से इस सूत्र में एक बात और समझ लें। शब्द हो, नाम हो, सब मन से पैदा होते हैं। सारी सृष्टि मन की है। मन ही निर्मित करता और बनाता है। और मन अज्ञान है। मन को कुछ भी पता नहीं। लेकिन जो मन को पता नहीं है, मन उसको भी निर्मित करता है। निर्मित करके एक तृप्ति हमें मिलती है कि अब हमें पता है। अगर मैं आपसे कहं, आपको ईश्वर का कोई भी पता नहीं है, तो बड़ी बेचैनी पैदा होती है। लेकिन मैं आपसे कहं कि अरे आपको बिलकुल पता है, आप जो सुबह राम-राम जपते हैं, वही तो है ईश्वर का नाम, मन को राहत मिलती है। अगर मैं आपसे कहूं, नहीं, कोई उसका नाम नहीं, और जो भी नाम तुमने लिया है, ध्यान रखना, उससे उसका कोई भी संबंध नहीं है, तो मन बडी बेचैनी में, वैक्यूम में, शून्य में छूट जाता है। उसे कोई सहारा नहीं मिलता खड़े होने को, पकड़ने को। और मन जल्दी ही सहारे खोजेगा। सहारा मिल जाए, तो फिर और आगे खोजने की कोई जरूरत नहीं रह जाती। मन सब्स्टीटयूट देता है सत्य के, सत्य की परिपूरक व्यवस्था कर देता है। कहता है, यह रहा, इससे काम चल जाएगा। और जो मन पर रुक जाते हैं, वे उन पथों पर रुक जाएंगे जो आदमी के बनाए हुए हैं, उन शास्त्रों पर रुक जाएंगे जो आदमी के निर्मित, और उन नामों पर रुक जाएंगे जिनका परमात्मा से कोई भी संबंध नहीं है। इस पहले ही छोटे से परम वचन में लाओत्से सारी संभावनाएं तोड़ देता है। सहारे, सारे सहारे, छीन लेता है। आदमी का मन जो भी कर सकता है, उसकी सारी की सारी पूर्व-भूमिका नष्ट कर देता है। सोचेंगे हम कि अगर ऐसा ही है, तो अब लाओत्से आगे लिखेगा क्या? कहेगा क्या? जो नहीं कहा जा सकता, उसको कहेगा? जिस पथ पर विचरण नहीं हो सकता, उसका इशारा करेगा? जिस अविकारी को, जिस कालजयी को इंगित कर रहा है, शब्दों में उसे लाओत्से बांधेगा कैसे? लाओत्से की पूरी प्रक्रिया निषेध की होगी। इसलिए निषेध के संबंध में कुछ बात समझ लें, ताकि आगे लाओत्से को समझना आसान हो जाए। दो हैं रास्ते इस जगत में इशारा करने के। एक रास्ता है पाजिटिव, विधायक इंगित करने का। आप मुझसे पूछते हैं, क्या है यह? मैं नाम ले देता हूं-दीवार है, दरवाजा है, मकान है। विधायक अंगुली सीधा ही इशारा कर देती है, डायरेक्ट, यह रहा। आप पूछते थे, दरवाजा कहां है? यह है। आप पूछते थे, दीया कहां है? यह है। लेकिन अंगुलियों से जिस तरफ इशारे किए जा सकते हैं, वे क्षुद्र ही हो सकती हैं चीजें। विराट की तरफ अंगुलियों से इशारे नहीं किए जा सकते। क्षुद्र की तरफ इशारा अंगुली से किया जा सकता है-यह। कोई पूछता है, परमात्मा कहां है? तो नहीं कहा जा सकता, यह है। परमात्मा की तरफ इशारे अंगुलियों से नहीं करने पड़ते; सब अंगुलियां बांध कर, मुट्ठी बंद करके करने पड़ते हैं कि यह है। जब मुट्ठी बांध कर कोई कहता है कि यह है, तो उसका मतलब है इशारा कहीं भी नहीं जा रहा है-नोव्हेयर गोइंग। किसी तरफ है, ऐसा नहीं कह सकते; क्योंकि सब तरफ है। लेकिन वह आदमी तो इससे राजी न होगा। मुट्ठी बांध कर अगर मैं कहूं कि यह है, तो शायद समझेगा कि मुट्ठी है। तो मुझे कहना पड़ेगा, यह भी नहीं है, मुट्ठी भी नहीं है। और तब निषेध शुरू होगा। शायद वह आदमी पूछेगा, शायद आप समझे नहीं, मैं और अपने सवाल को सरल कर लूं। पूरब की तरफ है? तो मुझे कहना पड़ेगा, नहीं। जानते हुए कि पूरब भी उसी में है, कहना पड़ेगा, नहीं। क्योंकि अगर मैं कहूं पूरब की तरफ है, तो फिर दक्षिण का क्या होगा? उत्तर का क्या होगा? पश्चिम का क्या होगा? और जब हम कहते हैं, हां, पूरब की तरफ है, तो जाने-अनजाने हम कह जाते हैं कि पश्चिम की तरफ नहीं है। क्योंकि दिशाएं तो सिर्फ सीमित की सूचना देती हैं। शेष जो रह जाता है, उसको इनकार कर देती हैं। तो दूसरा रास्ता है निषेध-इंगित का। उसमें जब कोई बताने चलता है, तो वह यह नहीं कहता, यह है। वह कहता है, यह नहीं है, यह नहीं है, यह नहीं है, नेति-नेति। नॉट दिस, नॉट दिस, नॉट दिस, वह कहता चला जाता है। बड़े धीरज की जरूरत है निषेध के मार्ग पर। क्योंकि जो-जो आप कहेंगे, यह है? वह कहेगा, नहीं है। जो-जो आप कहेंगे, यह है? वह कहेगा, नहीं है। और वह जगह आ जाएगी, जब पछने को कुछ भी न रहेगा कि यह है? तब वह कहेगा, यही है। जैसे आप कमरे में मुझसे पूछने चले और आपने टेबल पकड़ी और कुर्सी पकड़ी और दीवार पकड़ी। और मैं इनकार करता गया, इनकार करता गया। और कमरे की सब चीजें चुक गईं। और आपने मुझे पकड़ा, और मैंने इनकार किया। और आपने आपको पकड़ा, और मैंने इनकार किया। और इनकार करने को कुछ भी न बचा। तब लाओत्से कहेगा, यह है। लेकिन तब आपकी कठिनाई होगी; आप कहेंगे, अब तो सब इनकार कर दिया। अब? इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज

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