Book Title: Syadvad Manjari
Author(s): Hemchandracharya, Mallishensuri, Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 3
________________ प्रस्तावना. -- - क्यां हेमचं गुरुनी अति मिष्ट वाणी। __ वाणी कहां नदधिगनिर मालिषेणी ॥ क्यां न्यायशास्त्र परिगुंफित जैनवाणी। ___ मारी अहो! मति कहां अति दोष खाणी ॥१॥ अहो! सुझजनो !! कनिकालकेवनी महान् आचार्य श्री हेमचंइजी महाराजना नामश्री आने कोइ पण अजाण्यु नश्री. एबुं कहे. वाय डे के, ते श्री महान् प्राचार्यजीए सामात्रणक्रोम श्लोकोनी रचना करी. परंतु तेमाना आने घणा थोमाज ग्रंथो उपलब्ध थाय डे. तोपण तेमना हस्तकमलथी रचाएला अतिविझता नरेला आजे जे ग्रंथो दृष्टिगोचर याय बे, ते खरेखर तेमनुं अतिनत्कृष्ट ज्ञान सूचवे जे. आ अन्ययोगव्यवच्छेदिका नामनी श्री वीरप्रन्नुनी स्तुतिरूप हा. त्रिंशिका पण ते महान् आचार्य श्री हेमचंदजीमहाराजनी रचेली . ते बत्रीसे काव्योमां ते आचार्यजी महाराजे एटलो तो गंभीर नावार्थ सूचव्यो ने. के ते जोर विज्ञानाना अंतःकरणमां तेमनी विक्ष्ता माटे अत्यंत चमत्कार नपने ले. ते बत्रीसीपर महाविहान् आचार्यमहाराज श्रीमविषेणसूरिजीए आशरे त्रणहजार श्लोकोना पूरवाली न्यायना विषायथी नरपूर स्याक्षादमंजरी नामनी टीका रचेली ने, अने ते टीका, श्रीमल्लिषेणमूरिजीनु अति नम, ज्ञान सूचवे बे. आवा न्या र आ आचार्यजीमहाराजनी जन्म । दीक्षा । भाचार्यपद विगेनी सालो। तथा तेमणे शुं शुं कार्यों कर्या । ते संबंधि विस्तारथी वृत्तांत । अमारां तरफथी बहार पडला जैनधर्मनो प्राचीनइतिहास भाग पे हेलाना पृष्ट १४८ तथा भाग बीजाना पृष्ट २६ थी ८१ मुधीमा आपलं छे । तेथी अहीं फरीने लख्य नथी।

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