Book Title: Swayambhustotra
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp

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Page 10
________________ आचार्य समन्तभद्र रचित स्वयम्भूस्तोत्र का वैशिष्ट्य प्रो. (डॉ.) वीरसागर जैन* आचार्य समन्तभद्र द्वारा रचित स्वयम्भूस्तोत्र जैन स्तुति-साहित्य का एक आदर्श/मानक ग्रन्थ है। स्तुति, स्तुत्य, स्तुतिकर्ता, स्तुतिफल - इन सभी स्तुति-विषयक जिज्ञासाओं के समुचित समाधान हेतु इस एक ही ग्रन्थ का अध्ययन पर्याप्त है। ___ अधिकांश लोग दार्शनिक ग्रन्थों को गूढ-गम्भीर और स्तुति-साहित्य को एकदम हल्का-फुल्का व सरल समझते हैं; परन्तु इस स्वयम्भूस्तोत्र को पढ़ने से पता चलता है कि वस्तु-स्थिति ऐसी नहीं है। जैन स्तुति-साहित्य को समझना भी कोई बच्चों का खेल नहीं है, उसमें भी गूढ़-गम्भीर दर्शनशास्त्र भरा हुआ होता है। यही कारण है कि इस स्वयम्भूस्तोत्र के संस्कृत-टीकाकार आचार्य प्रभाचन्द्र ने इस स्तोत्र को 'नि:शेषजिनोक्तधर्मविषयः' अर्थात् 'जिनेन्द्र-कथित सर्व विषयों से भरा हुआ' कहा है। यथा - यो निःशेषजिनोक्तधर्मविषयः श्रीगौतमाद्यैः कृतः। सूक्तार्थैरमलैः स्तवोऽयमसमः स्वल्पैः प्रसन्नैः पदैः ॥ इससे स्पष्ट है कि जैनदर्शन की सम्पूर्ण वस्तु-व्यवस्था (द्रव्य-गुण-पर्याय, प्रमाण-नय-विवेचन, अनेकान्त-स्याद्वाद, अहिंसा आदि सभी सिद्धान्तों) को समझे बिना जैन स्तुति-साहित्य को नहीं समझा जा सकता। यहाँ तक कि एक सच्चा स्तुतिकर्ता भी नहीं बना जा सकता। अतएव इस स्वयम्भूस्तोत्र को अत्यधिक एकाग्रतापूर्वक, पूरा मन लगाकर पढ़ना-समझना बहुत आवश्यक है। पाठकों को आश्चर्य होगा कि यद्यपि यह एक स्तुति-ग्रन्थ है, परन्तु इसमें न तो कहीं कुछ रोने-गिड़गिड़ाने जैसा कुछ है, न कोई याचना-प्रार्थना है, न कोई निवेदन-प्रतिवेदन है, न कोई रूठना-मनाना है, न कोई अभिशाप-आशीर्वाद-वरदान की बात है और न ही कोई सख्य-दास्यादि विविध भावों की उपासना है। और तो और, जिन 24 तीर्थंकरों की इसमें स्तुति की गई है, उनके जीवनवृत्त की भी इसमें कोई खास जानकारी नहीं है। उनकी *दर्शन संकाय प्रमुख, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ (मानित विश्वविद्यालय), नई दिल्ली-110018 (ix)

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