Book Title: Swayambhustotra
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp

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Page 8
________________ मंगल आशीर्वाद सिद्धान्तचक्रवर्ती परमपूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज PRINCanam k antannel.nl सुप्तोत्थितेन सुमुखेन सुमंगलाय। द्रष्टव्यमस्ति यदि मंगलमेव वस्तु ॥ अन्येन किं तदिह नाथ ! तवैव वक्त्रम् । त्रैलोक्यमंगलनिकेतनमीक्षणीयम् ॥ 19 ॥ - भोज राजा कृत चतुर्विंशति तीर्थंकर जिनस्तवनम्, भूपालचतुर्विंशतिका अर्थ - प्रातः सो कर उठे हुए सत्पुरुष श्रावक को सुमंगल के लिए यदि कोई मांगलिक वस्तु दर्शन करने योग्य है तो हे तीर्थंकर वृषभनाथ ! दूसरी अन्य किसी वस्तु की क्या आवश्यकता है? उसे तो तीन लोक के मंगलों के घर-स्वरूप आपके श्रीमुख का ही दर्शन करना चाहिए। चौबीस तीर्थंकर जैन संस्कृति के मूलाधार हैं। जैन शास्त्रों में तो उनका विस्तृत वर्णन मिलता ही है, वैदिक, बौद्ध आदि अन्य शास्त्रों में भी जैनों के चौबीस (vii)

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