Book Title: Sutrakritangam
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Venichand Surchand
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दंडे णिक्खित्तेता णिक्खित्ते, सेणं एयारवेणं विहारणं विहरमाणा जाव वासाइं चउपंचमाइं छट्टहसमाई वा अप्पयरो वा भुजयरो वा देसं दृइज्जेत्ता अगारं वएज्जा ?, हंता वएज्जा, तस्सणं सबपाणेहिं जाव सबसत्तेहिं दंडे णिक्खित्ते ?, णो इणढे समढे, से जे से जीवे जस्स परेणं सबपाणेहिं जाव सबसत्तेहिं दंडे णो णिक्खित्ते, से जे से जीवे जस्स आरेणं सवपाणेहिं जाव सत्तेहिं दंडे णिक्खित्ते, से जे से जीवे जस्स इयाणि सबपाणेहिं जाव सत्तेहिं दंडे णो णिक्खित्ते भवइ, परेणं असंजए आरेणं संजए, इयाणिं असंजए, असंजयस्स णं सबपाणेहिं जाव सत्तेहिं दंडे णो णिक्खित्ते भवइ, से एवमायाणह ? णियंठा !, से एवमायाणियत्वं ॥ भगवं च णं उदाहु णियंठा खलु पुच्छियवा-आउसंतो! नियंठा इह खलु परिवाइया वा परिवाइआओ वा अन्नयरेहितो तित्थाययणेहितो आगम्म धम्मं सवणवत्तियं उवसंकमेजा ?, हंता उवसंकमेजा, किं तेसिं तहप्पगारेणं धम्मे आइक्खियत्वे ?, हंता आइक्खियचे, तं चेव उवट्ठावित्तए जाव कप्पंति ?, हंता कप्पंति, किं ते तहप्पगारा कप्पंति संभुंजित्तए ?, हंता कप्पंति, तेणं एयारवेणं विहारेणं विहरमाणा तं चेव जाव अगारं वएना ?, हंता वएजा, ते णं तहप्पगारा कप्पंति संभुंजित्तए ?, णो इणढे समढे, से जे से जीवे जे परेणं नो कप्पंति संभुंजित्तए, सेजे से जीवे आरेणं कप्पंति संभुंजित्तए, से जे से जीवे जे इयाणी णो कप्पंति संभुंजित्तए, परेणं अस्समणे आरेणं समणे, इयाणिं अस्समणे, अस्समणेणं सद्धिं णो कप्पंति समणाणं निग्गंथाणं संभुंजित्तए, से एवमायाणह ? णियंठा !, से एवमायाणियत्वं ॥ सूत्रं ७८ ॥
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