Book Title: Sutra Samvedana Part 05 Author(s): Prashamitashreeji Publisher: Sanmarg Prakashan View full book textPage 7
________________ अनुवादक की अंतरेच्छा ज्ञान सदृश कोई विशेषता नहीं होती और जब वह ज्ञान आत्मलक्षी होता है तो उससे बढ़कर कोई विशिष्टता नहीं होती । प्रत्यक्ष एवं परोक्ष गुरु भगवंतों की महती कृपा से सूत्र संवेदना भाग४, भाग-१, भाग-२ के बाद भाग-३ के अनुवाद का आशीर्वाद श्रद्धेय साध्वी श्री प्रशमिताश्रीजी से मिला । एवं अब भाग-५ की पुस्तक भी आपके हाथों में है। अल्पश्रुत कितना भी पुरुषार्थ करें, परिणति में कमी रह ही जाती है। हर भाषा के अपने विशेष शब्द होते हैं जिनके तुलनात्मक शब्द कभी-कभी बड़ी मुश्किल से मिलते हैं। फिर भी, मर्म को समझकर, अनुवाद किया जाता है। प्रबुद्ध पाठक इस बाध्यता को समझेंगे, यह अनुरोध है। भावार्थ यथावत् बना रहे इसका हमने भरसक प्रयास किया है। इस प्रयास में श्लाघनीय सहयोग दिया है स्नेही श्री शैलेषजी मेहता ने । इस पुस्तक में आयरिय उवज्झाय से सकलतीर्थ तक के चौदह सूत्रों की व्याख्या है । इस अनुवाद के संबंध में प.पू.श्रद्धेय गुरुवर्या श्री प्रशमिताश्रीजी ने जो वात्सल्य एवं विश्वास रखा उसके लिए उन्हें अंतर्मन से कोटिकोटि वंदन। पू.साध्वी श्री जिनप्रज्ञाश्रीजी प्रेरणा स्रोत रहीं, बडी धैर्यता से उन्होंने हमारी कमजोरियों को नजर अंदाज किया। उन्हें कोटि-वंदन । इस सुअवसर पर याद आती हैं प.पू.स्व.गुरुवर्या श्री हेमप्रभाश्रीजी एवं पू.सा.श्री विनीतप्रज्ञाश्रीजी जो इस पुण्य कार्य का प्रथम कारण बनीं। उन्हें कोटि-कोटि नमन । .. गुरु भगवंतों से प्रार्थना कि इतनी शक्ति बनी रहे कि, ज्ञान-धारा सतत सम्यक् चारित्र में परिणमित बनकर रहे ।। १०, मंडपम रोड, किलपॉक, - डॉ. ज्ञान जैन चेन्नई - ६०००१०. जेठ सुद-११ २०७१ B.Tech..M.A..Ph.D.Page Navigation
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