Book Title: Sthanang Sutram Part 01
Author(s): Vijaychandrasguptasuri
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीस्थानाङ्ग श्रीअभय० वृत्तियुतम् भाग-१ GERR विषया नक्रमः क्रमः विषयः सूत्रम् पृष्ठः | क्रमः विषयः सूत्रम् पृष्ठः 2.1.10 दण्डकेषु शरीरप्ररूपणा, शरीरोत्पत्ति | संघातभेदाभ्यां च / 81 112-113 निर्वृत्तिकारणम्, त्रसस्थावरयोर्भव्या | 2.3.2 संघात- भेद- परिशाट- परिपात-विध्वंसभव्यभेदी। भेद-भेदुरधर्म- परमाणु- सूक्ष्मबद्धस्पृष्ट२.१.११ पूर्वोत्तरयोः प्रव्रज्यादि संलेखनान्तम् / 76 101 पर्यात्ताऽऽत्तेष्टादीतरैः पुद्रलाः, आत्तादीतरैः 2.2 द्वितीयाध्ययने द्वितीयोद्देशकः 77-80 103-112 शब्द-रूप-रस- गन्ध- स्पर्शाः। 82-83 113-114 2.2.1 ऊवोत्पन्नादीनां तत्रान्यत्र पापवेदनम्, |2.3.3 ज्ञान- दर्शन- चारित्र- तपोऽन्यैराचाराः, मनुष्याणामिहान्यत्र / 77 103-104/ समाध्युपधान- विवेक- व्युत्सर्ग- भद्रा२.२.२ नारकादीनां गत्यागती। 78 105 सुभद्रा- महाभद्रा- सर्वतोभद्रा- मोकयव२.२.३ भव्या- ऽनन्तरोत्पन्नगतिसमापन्न वजमध्य-चन्द्रप्रतिमाः, अगार्यनगारप्रथमसमयोत्पन्ना- ऽऽहारकोच्छ्रासक-सेन्द्रिय सामायिकानि / 84 115-116 पर्याप्तक- संज्ञि- भाषक- सम्यग्दृष्टि-परित्त- 2.3.4 देवादीनामुपपातादि आयुःसंवर्तसंख्यातस्थितिक-सुलभबोधिक-कृष्णपाक्षिक कान्तम् (गर्भे वैक्रियं गत्यन्तरं च)। 85 118 चरमेतरैर्भेदैर्नारकादिप्ररूपणा। 79 106-107/2.3.5 भरतैरावतादिक्षेत्र-कूटशाल्मल्यादिसमवहत-वैक्रियेतरैलॊकज्ञानम्, देशसर्वाभ्यां वृक्ष- गरुडादिदेवनिरूपणम्, शब्दादिज्ञानम्, अवभासनादि निर्जरान्तम् (आयामविष्कम्भ- संस्थानमरुतादीनाम् एकद्विशरीरत्वम् / 80 109-110 परिणाहोच्चत्वोद्वेधवर्णनम्)। 86 2.3 द्वितीयाध्ययने तृतीयोद्देशक: 81-94 112-153 2.3.6 क्षुद्रहिमवच्छिखर्याद्याः पर्वताः, भाषा- ऽक्षरा-ऽऽतोद्य- तत- घन स्वात्याद्या देवाः, सौमनस्काद्या भूषणतालेतरैः शब्दाः, वक्षस्काराः। 87 124-125
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