Book Title: Sthanang Sutram Part 01
Author(s): Vijaychandrasguptasuri
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीस्थानाङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ // 6 // क्रमः विषयः सूत्रम् पृष्ठः / क्रमः विषय: सूत्रम् पृष्ठः देवाभ्युत्थानादि 4, चैत्यवृक्षचलन 3.1.20 निःशीलराजादीनां नरकगमनम्, त्यागिनां लोकान्तिकागमनकारणानि / 134 207-208 देवत्वम्, विमानवाः , आनतादितनूचत्वम्, | 3.1.13 मातापितृ- भर्तृ-धर्माचार्य कालिकप्रज्ञप्तयः / 150-152 224 / दुष्प्रतिकरत्वम्। 135 209-210/3.2 तृतीयाध्ययने द्वितीयोद्देशकः 153-167 226-244 | 3.1.14 अनिदान- दृष्टिसंपन्न- योगवाहिताभिर्मोक्षः 3.2.1 नामज्ञानोवांदिलोकाः अवसर्पिण्यादित्रैविध्यम्, पुद्गलचलनोपधि (लोकस्वरूपम्। 153 226 परिग्रहत्रैविध्यम् / 136-138 213-214 | 3.2.2 असुरेन्द्रादिपर्षदः, याम३.१.१५ प्रणिधानानि, योनयः। 139-140 215-216 वयोभिर्धर्मश्रवणादि। 154-155 227-228 3.1.16 संख्याताऽसंख्याताऽनन्तजीविका 3.2.3 ज्ञानादिबोधि- बुद्धाः, इहलोकवनस्पतयः, मागधादीनि तीर्थानि / 141-142 218 प्रतिबद्धादिप्रव्रज्या: 32 / 156-157 229 3.1.17 सुषमामानम्, सुषमानरोच्चत्वायुषी, 3.2.4 नोसंज्ञा- संज्ञा- नोसंज्ञोपयुक्ता अर्हच्चक्रिदशारवंशाः, यथायुषो निर्ग्रन्थाः, शैक्ष- स्थविरभूमयः। 158-159 230-231 मध्यमायुषश्च (32 आ०)। 143 219 |3.2.5 सुमनस्कादिपुरुषभेदाः 127, 3.1.18 तेजोवायुस्थितिः, शाल्यादीनां योनिः, एतल्लोकगर्हित- प्रशस्तत्वे। 160-161 232-23 शर्करावालुकयोः स्थितिः 3.2.5 स्त्र्यादि- सम्यग्दृष्ट्यादि(भंतेशब्दार्थः)। 144-146 220 पर्याप्तकादिसूक्ष्म-संज्ञि३.१.१९ धूमप्रभास्थितिः, उष्णवेदना, अप्रतिष्ठानादीनि भव्यादीनां त्रैविध्यम् / सीमन्तकादीनि च समानि, उदकरसा | 3.2.6 आकाशप्रतिष्ठितादि, ऊर्ध्वादिदिक्षु बहुमत्स्याश्चोदधयः / 147-149 222 गत्यादयः 14, (दिक्स्वरूपम्)। 163 HTTA
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