Book Title: Sthanang Sutram Part 01
Author(s): Vijaychandrasguptasuri
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 17
________________ श्रीस्थानाई श्रीअभय० वृत्तियुतम् भाग-१ // 8 // पृष्ठः 289 श्रीस्थानाङ्गसूत्रस्य विषया 293 नक्रमः क्रम: विषयः सूत्रम् पृष्ठः क्रम: विषयः सूत्रम् 3.3.14 कथाविनिश्चययोर्भेदाः स्थाप्यत्रैविध्यम्। 199-201 (अर्थकाम- धर्मकथालक्षणम्)। 189277 3.4.76 प्रव्राजनादिष्वकल्प्याः B/3.3.15 पर्युपासना- श्रवणादिफलपरम्परा / 190 278-279/ (पण्डकवातिक- क्लीबस्वरूपम्) / 202 तृतीयाध्ययने चतुर्थोद्देशकः 191-234 279-319 3.4.8 अवाचनीय- वाचनीय३.४.१ प्रतिमाप्रतिपन्नस्योपाश्रय दुस्संज्ञाप्य- सुसंज्ञाप्याः। 203 संस्तारकाः। 191 280 3.4.9 मण्डलिकपर्वताः, महातिमहा३.४.२ कालसमयादित्रैविध्यं, वचनत्रैविध्यम लयाश्च (मानुषोत्तर-कुण्डल(पुद्गलपरावर्तस्वरूपम्)। 192-193 281 रुचकस्वरूपम्। 204-205 ज्ञानादिप्रज्ञापनासम्यक्त्वे उपघात 3.4.10 सामायिकादिविशुद्धी च, आराधना-संक्लेशाऽसंक्लेशातिक्रम निर्विष्टकल्पादिस्थितिः। 206 व्यतिक्रमाऽतीचाराऽनाचाराः, अतिक्रमादि 3.4.11 शरीरत्रयं नारकादीनाम्, गुरुप्रतिक्रमणं च, प्रायश्चित्तत्रैविध्यम् गतिसमूहा-नुकम्पा- भाव(आधाकर्मादिस्वरूपम्)। 194-196 283 श्रुतप्रत्यनीकाः। 207-208 |3.4.4 अकर्मभूमयः, जम्बूमन्दरदक्षिणोत्तर 3.4.12 पितृमात्रङ्गानि / 209 वर्षवर्षधर- हृद- तद्देवी-नदीत्रिकं जम्बूमन्दर 3.4.13 श्रमण- श्रमणोपासकयोपूर्वपश्चिमादिषु नदीत्रिकं च / 197 286-287 महानिर्जराकारणानि / 3.4.5 देश- सर्वपृथ्वीचलनम् / 198 287 3.4.14 पुदलप्रतिघातहेतवः, एक-द्वि३.४.६ किल्बिषस्थितिः, शक्रपर्षत्स्थितिः, त्रि-चतुष्काः, ऊर्ध्वादिष्वभिप्रायश्चित्त-गुरु- पाराशिकानव समागमनक्रमः। 211-213 301 303 210 304 // 8 // 305

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