Book Title: Sthanang Sutram Part 01
Author(s): Vijaychandrasguptasuri
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीस्थानाङ्ग श्रीअभय० वृत्तियुतम् भाग-१ // 9 // W0 क्रमः विषयः सूत्रम् पृष्ठ: / क्रम: विषय: सूत्रम् पृष्ठः 3.4.15 देव-राज- गणिनामृद्धयः 21 / 214 306 पुद्गलाः, त्रिप्रदेशिकाद्यास्त्रिगुण३.४.१६ गौरवाणि धार्मिकादिकरणानि, रूक्षान्ताः पुद्गलाः। 232-234 ३१८स्वाध्याय- ध्यान- तपोधर्माः। 215-217 308 4 // चतुर्थमध्ययनं चतु:स्थानम् // 235-388 320 3.4.17 व्यावृत्त्यध्युपपत्ति- पर्याप्तित्रैविध्यम् 4.1 चतुर्थाध्ययने प्रथमोद्देशक: 235-277 32 लोक- वेद- समयानामन्तस्त्रिधा, |4.1.1 अन्तक्रियाचतुष्कम्। 235 320-321 जिनकेवल्यर्हतां त्रैविध्यम् / 218-220 309-3104.1.2 उन्नतवृक्षादिसाम्येन 3.4.18 लेश्यानां दुरभिगन्धसुरभ्यादि पुरुषचतुर्भङ्गायः 36 / / 236 324 चतुर्दशधा स्वरूपम्, मरण-बाल 4.1.3 प्रतिमाप्रतिपन्नभाषा:, सत्यादिभाषा: पण्डित- बाल- मरणभेदा: 12 / 221-222 311 वस्त्रौपम्येन पुरुषचतुर्भङ्गयः। 237-239 326-327 3.4.19 अव्यवसायिनो व्यवसायिन 4.1.4 अतिजातादिसूत्रचतुष्कम्, सत्यादिश्वाहितयोः स्थानानि / 223 313-314 पुरुषचतुर्भङ्गयः, कोरकोपम३.४.२० घनोदध्यादिवलयानि, त्रिसमय पुरुषचतुर्भङ्गयः। 240-242 328-329 विग्रहवन्तः,(पञ्चसमयविग्रहः) / 224-225 315 त्वक्खादादिघुणोपम३.४.२१ युगपत्कर्माशक्षयः, अभिजिदादि भिक्षुचतुर्भङ्गी। 243 330 नक्षत्राणां 7 तारकाः, धर्मशान्त्यन्तरम्, अग्रबीजादिवनस्पतिभेदाः, वीरयुगान्तकृमि: मल्लि-पार्श्वप्रव्रज्या नारकानागमनकारणानि, परिवारौ, वीरचतुर्दशपूर्विणः, निर्ग्रन्थी- सकाट्यः। 244-246 331-332 चक्रवर्त्तिजिनाः। 226-231 317 4.1.7 ध्यानस्य भेदलक्षण- भावना| 3.4.22 ग्रैवेयकप्रस्तटाः, स्त्र्यादिचितादि ऽऽलम्बनानि। 247 334 // 9 //
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