Book Title: Sthanang Sutram Part 01
Author(s): Vijaychandrasguptasuri
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 19
________________ स्थानाड श्रीस्थानाङ्ग श्रीअभय० वृत्तियुतम् भाग-१ // 10 // BERRI विषया नुक्रमः क्रमः विषयः सूत्रम् पृष्ठः / क्रम: विषयः सूत्रम् पृष्ठः 4.1.8 देवानां स्थिति- संवासाः, कषायभेदाः, ऽऽरोपणा- परिकुञ्चनाः)। 262-263 / / 354 क्रोधादीनां प्रतिष्ठानमुत्पत्तिहेत्वनन्तानुबन्ध्याद्या 4.1.15 प्रमाणादिकालाः, वर्णादिपरिणामाः, भोगनिर्वर्तितादिभेदाश्च (अनन्तानुबन्धिन मध्यमजिनचतुर्यामाः। 264-266 357 उपशमादिप्रतिबन्धकत्वमेव)। 248-249 343 4.1.16 दुर्गति-सुगति- दुर्गत- सुगताः, 4.1.9 कर्मप्रकृतिचयनादिकारणानि, प्रथमसमयजिनक्षेयकांशाः समाधि- भद्रा- क्षुद्र केवलिवेद्यकौशा: मोकादिप्रतिमाः 12 / 250-251 346 प्रथमसमयसिद्धक्षेयकाशाश्च। 267-268 359-360 4.1.10 अजीवारूप्यस्तिकायाः, फलोपम 4.1.17 दृष्टि- भाषा-श्रवण- स्मृतयः पुरुषचतुर्भङ्गी, सत्य- मृषा हास्यकारणानि, काष्ठ- पक्ष्म- लोहप्रणिधानादि भेदाः। 252-254 348 प्रस्तरान्तरवदन्तराणि, दिवसयात्रोच्चत्ता११ आपातभद्रकादि-आत्मपापदा कब्बाडभृतकाः, प्रकटद्यभ्युत्थानादयः प्रच्छन्नप्रतिसेविचतुर्भङ्गी। 269-272 360-361 सूत्रधराद्यन्ताश्चतुर्भाग्यः 14 / 255 350 4.1.18 असुरादीनामग्रमहिषीचतुष्कम्, 4.1.12 असुरेन्द्रादिलोकपालाः, देवभेदाः, गोरसस्नेह- महाविकृतयः, (विकृतिस्वरूपम्), प्रमाणभेदाः। 256-258 351-352 कूटागारशालावत्, पुरुषस्त्रीचतुर्भङ्गयौ, 4.1.13 दिक्कुमार्यः, शक्रेशानमध्यपर्षद्देव द्रव्याद्यवगाहनाः, अङ्गबाह्यादेवीस्थितिः, संसारभेदाः। 259-261 353 श्चन्द्रादिप्रज्ञप्तयः। 273-277 362-364 4.1.14 दृष्टिवादे परिकर्मादिभेदाः (पूर्वपदमानम्), |4.2 चतुर्थाध्ययने द्वितीयोद्देशक: 278-310 367-416 प्रायश्चित्तप्रकाराः, (प्रतिसेवा- संयोजना 4.2.1 क्रोधादिमन आदिसलीनासंलीनते, 4.1 // 10 //

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