Book Title: Sthanang Sutram Part 01
Author(s): Vijaychandrasguptasuri
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 13
________________ श्रीस्थानाई श्रीअभय० वृत्तियुतम् भाग-१ // 4 // श्रीस्थानाङ्ग सूत्रस्य + विषया + 000 नुक्रमः + 99 + क्रम: विषयः सूत्रम् पृष्ठः / क्रमः विषयः सूत्रम् पृष्ठः 2.3.7 दीर्घवैताच्याः, तिमिस्रगुहाद्याः क्षुल्लहिमवदाद्या दीनि, (योगप्रत्ययबन्धस्वरूपम्। 96 आद्यन्तकूटाः (आयामाद्यैः) / 2.4.3 देश- सर्वाभ्यां शरीरस्पर्शादि / 97 2.3.8 पद्महदाद्या ह्रदाः श्रूयाद्या देव्यः / 88 129-130 2.4.4 क्षयोपशमाभ्यां धर्मश्रवणादि / 98 |2.3.9 सुषमादुष्षमामानम्, सुषमायां मनुष्य 2.4.5 पल्योपम- सागरोपमस्वरूपम् / स्योच्चत्वमायुः, अर्हदादिवंशः, देव 2.4.6 आत्म- परप्रतिष्ठिताः क्रोधादयः, कुर्वादिषु कालनियमः(आ०१८)। 89 136-137 संसारसमापन्नजीवाः, सर्वजीवानां 2.3.10 चन्द्र-सूर्य- 28 नक्षत्र-८८ ग्रहाः। 90 139-140 सिद्धेन्द्रिय-कायादिभिर्द्वविध्यम्, 2.3.11 वेदिकोच्चत्वम्, धातकीपूर्वापरार्द्धयोः (मिथ्यादृष्टेरज्ञानम्)। 100-101 164-165 पदार्थद्वयम्, कालोदवेदिकोच्चत्वम्, 2.4.7 अनुज्ञाताननुज्ञातानि मरणानि पुष्करार्द्धद्वये क्षेत्रादिद्विकम् / 91-93 142-144 (9 आ०), (संलेखनादिविधिः)। 102 168 2.3.12 असुरादीन्द्रद्वयम्, विमानवर्णः, | 2.4.8 लोकः, जीवाजीवयोरनन्तशाश्वग्रैवेयकतनुमानम् / 94 151-152/ तत्वे, बोधि-बुद्ध- मोह- मूढाः / 103-104 172 2.4 द्वितीयाध्ययने चतुर्थोद्देशकः 95-118 153-181/2.4.9 देशसर्वज्ञान- दर्शनावरणीये 2.4.1 समयावलिकादित उत्सर्पिण्यन्ता सातासाते, दर्शन- चारित्रमोहौ, अद्धानाम् 25, ग्रामनगरादितो राजधान्यन्ता भवायुषी, शुभाशुभनामानि, उच्चनीचे, नाम् 47, छायादीनां शनिप्रवान्तानां प्रत्युत्पन्नागामिनाशैरन्तरायं च / 105 173 च जीवाजीवत्वम् / 95 153-154 2.4.10 प्रेम- द्वेषोद्भवा मूर्छा, 2.4.2 प्रेम-द्वेषौ बन्धौ, राग-द्वेषाभ्यां पापम्, धार्मिककेवल्याराधना:, आभ्युपगमिक्यौपक्रमिकीभ्यामुदीर्णा तीर्थकराणां वर्णाः। 106-108 175-176 // 4 //

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