Book Title: Sthanang Sutram Part 01
Author(s): Vijaychandrasguptasuri
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीस्थानाङ्ग सूत्रम् पृष्ठः श्रीअभय० वृत्तियुतम् भाग-१ // 5 // क्रमः विषयः सूत्रम् पृष्ठः / क्रमः विषयः 2.4.11 पूर्ववस्तु-नक्षत्रतारक- मनुष्यक्षेत्र 3.1.5 अल्पदीर्घाशुभशुभदीर्घायुष्टकारणानि, वर्तिसमुद्र-नरकगतचक्रवर्तिनः / 109-112 177 (संविग्नलुब्धकदृष्टान्तौ)। 125 12 भवनवास्यादिस्थितिः, कल्पस्त्रियः, |3.1.6 गुप्त्यगुप्तिदण्डाः / तेजोलेश्या; कल्पे परिचारणा, 3.1.7 मनोवाक्कायैर्दीर्घ- ह्रस्व- कायैश्च बसस्थावरकायनिर्वर्तिताः पुद्गल चयनाद्याः, गर्हाप्रत्याख्याने / 127 द्विप्रदेशिकाद्या द्विगुणरूक्षान्ताः पुद्गलाः, |3.1.8 पत्र-फल- पुष्पोपगवृक्षवत्(निषेकादिलक्षणम्)। 113-118 178-179 पुरुषत्रैविध्यम्, नाम- ज्ञान- वेदोत्तम-धर्मोग्र। तृतीयमध्ययनं त्रिस्थानम् // 119-234 182-319 | दासादिभेदाः पुरुषाः (9 आ०)। 128 201 तृतीयाध्ययने प्रथमोद्देशकः 119-152 182-225/3.1.9 मत्स्य- पक्ष्यरोभुजपरिसणां 3.1.1 नामस्थापना- द्रव्य-ज्ञान-दर्शन त्रैविध्यम् (12 आ०) तिर्यगादिस्त्रीचारित्र- देवेन्द्रादिनवकम् / 119 182 पुरुषनपुंसकत्रैविध्यम् पर्यादाया- ऽपर्यादायोभयैरभ्यन्तर तिर्यक्रैविध्यम् / 129-131 203-204 बाह्यादानानादानेतरक्रियम्, |3.1.10 लेश्यात्रयवन्तो जीवा: कत्यकत्यवक्तव्यसंचिता (24 आ०)। नारकाद्याः। 120-121 186-187 3.1.11 ताराचलनं विद्युत्कारः देवपरिचारणाया मैथुनतत्कारकस्य स्तनितशब्दश्च / 133 206 च त्रैविध्यम् / 122-123 188-189 3.1.12 लोकान्धकारोद्योती, देवान्धयोग- प्रयोग- करणत्रैविध्यमारम्भ कारोद्योतसंनिपातादि, 15 संरम्भ- समारम्भाश्च / 124 190 देवेन्द्रादीनां मनुष्यलोकागमनम्, 132 205 // 5 // 3.1.4
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