________________
परिशिष्ट
श्री स्थानाङ्ग सूत्र सानुवाद भाग २
परिशिष्टम्-टिप्पनानि
['जैन विश्वभारती, लाडनूं' (राजस्थान) इत्यतः प्रकाशितात् ठाणं ग्रन्थात् मुनिनथमलजीलिखितात् हिन्दीभाषात्मकात् टिप्पनादुद्धत्य अत्र टिप्पनमुपन्यस्यते।]
"स्वर का सामान्य अर्थ है - ध्वनि, नाद। संगीत में प्रयुक्त स्वर का कुछ विशेष अर्थ होता है। संगीतरत्नाकर में स्वर की व्याख्या करते हुए लिखा है - जो ध्वनि अपनी-अपनी श्रुतियों के अनुसार मर्यादित अन्तरों पर स्थित हो, जो स्निग्ध हो, जिसमें मर्यादित कम्पन हो और अनायास ही श्रोताओं को आकृष्ट कर लेती हो, उसे स्वर कहते हैं। इसकी चार अवस्थाएं हैं - (१) स्थानभेद (Pitch) (२) रूप भेद या परिणाम भेद (Intensity) (३) जातिभेद (Quality) (४) स्थिति (Duration) ।
. स्वर सात हैं - षड्ज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पञ्चम, धैवत और निषाद। इन्हें संक्षेप में - स, रि, ग, म, प, ध, नी कहा जाता है। अंग्रेजी में क्रमशः Do, Re, Mi, Fa, So, Ka, Si कहते हैं और इनके सांकेतिक चिन्ह क्रमशः C, D, E, F, G, A, B हैं। सात स्वरों की २२ श्रुतियां [स्वरों के अतिरिक्त छोटी-छोटी सुरीली ध्वनियां] हैं-षड्ज, मध्यम और पञ्चम की चार-चार, निषाद और गान्धार की दो-दो और ऋषभ और धैवत की तीन-तीन श्रुतियां हैं।
- अनुयोगद्वार सूत्र [२६८-३०७] में भी पूरा स्वर-मंडल मिलता है। अनुयोगद्वार तथा स्थानांग दोनों में प्रकरण की समानता है। कहीं-कहीं शब्द-भेद है।
सात स्वरों की व्याख्या इस.प्रकार है(१) षड्ज - नासा, कंठ, छाती, तालु, जिह्वा और दन्त - इन छह स्थानों से उत्पन्न होनेवाले स्वर को षड्ज
- कहा जाता है। (२). ऋषभ - नाभि से उठा हुआ वायु कंठ और शिर से आहत होकर वृषभ की तरह गर्जन करता है, उसे ___ ऋषभ कहा जाता है। (३) गान्धार - नाभि से उठा हुआ वायु कण्ठ और शिर से आहत होकर व्यक्त होता है और इसमें एक विशेष
प्रकार की गन्ध होती है, इसलिए इसे गान्धार कहा जाता है। (४) मध्यम - नाभि से उठा हुआ वायु वक्ष और हृदय में आहत होकर फिर नाभि में जाता है। यह काया के
- मध्य-भाग में उत्पन्न होता है, इसलिए इसे मध्यम स्वर कहा जाता है। . (५) पंचम - नाभि से उठा हुआ वायु वक्ष, हृदय, कंठ और सिर से आहत होकर व्यक्त होता है। यह पांच
स्थानों से उत्पन्न होता है, इसलिए इसे पंचम स्वर कहा जाता है। (६) धैवत - यह पूर्वोत्थित स्वरों का अनुसन्धान करता है, इसलिए इसे धैवत कहा जाता है। (७) निषाद - इसमें सब स्वर निषण्ण होते हैं - इससे सब अभिभूत होते हैं, इसलिए इसे निषाद कहा जाता
है। बौद्ध परम्परा में सात स्वरों के नाम ये हैं -
1.
भेट२ भु.श्री मुविय सं. beinortan परिशिष्टमाथी बीघेख छ. 2. स्थानांगवृत्ति, पत्र ३७४
405