Book Title: Stav Parigna
Author(s): Prabhudas Bechardas Parekh
Publisher: Shravak Bandhu

Previous | Next

Page 14
________________ गा०-५६-७ ] । अ-प्रीति-परित्यागः * अ-प्रीति रहिता | अन्येषाम्-प्राणिनाम-आसन्नानाम् "अ-समाधि-कारण-परिहारवती," इत्य-ऽर्थः-- भावे तु-भाव-शुद्धा" ॥४॥ एतदेव समर्थयति :-.. . "धम्म-ऽस्थमुज्जएणं सव्वस्सा-5-पत्तियं न कायव्वं.” । इय संजमो वि सेश्रो. इत्थ य भयवं उदा-ऽऽहरणं. ॥ ५॥ : धर्माऽर्थम् अ-प्रीतिः उद्यतेन-प्राणिना सर्वस्य-जन्तोः कार्या-[सर्वथा] इय-एवम्-परा--प्रीत्य-ऽ-करणेन । संयमोऽपि श्रेयान्,-[नाऽन्यथा] । अत्र-अर्थ उदाऽऽहरणम्। भगवान्-[स्वयमेव वर्धमान-स्वामी ] "कथम् ?" इत्याऽऽह :"सो तावसा-ऽऽसमारो तेसिं अ-प्पत्तियं मुणेऊणं । परमं अ-बोहि-बीअं, तओ गओ हंतऽकाले वि." ॥६॥ पञ्चा० ७-१५. * सः भगवान् तेषाम्-तापसानाम् तापसा-ऽऽश्रमात-पितृव्य अ-प्रीतिम्-अ-प्रणिधानम् भूत-मित्र-] कुल-पति-संबम्धिनः | मत्त्वा-मनः-पर्यायेण, "किं भूतम् ?" . परमम् अ-बोधि-बीजम्-गुण-द्वेषेण, ततः-तापसा-ऽऽश्रमात् | "हन्त”-इत्युपदर्शने गतः-[भगवान] अ-कालेऽपि-प्रावृष्यऽपि" ॥ ६॥ "इय सब्वेण वि सम्मं सकं अ-प्पत्तियं सइ जणस्स। णियमा परिहरियव्वं.” “इयरम्मि सत्तत्त-चिंताग्रो.” ॥७॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 210