Book Title: Sramana 1999 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 177
________________ विद्यापीठ के परिसर में प्रो० सागरमल जी जैन के जुलाई १९९७ई० में पार्श्वनाथ विद्यापीठ के निदेशक पद से सेवानिवृत्त होने के बाद लगभग २ वर्ष तक संस्थान में निदेशक का पद रिक्त था। डॉ० सागरमल जी इस अवधि में संस्था में समय-समय पर पधारकर यहां की गतिविधियों को संचालित रखने में अपना योगदान अवश्य देते रहे। उनके पश्चात् डॉ० भागचन्द्र जैन 'भास्कर' प्रोफेसर एवं निदेशक पद पर नियुक्त हुए और उन्होंने १६ जुलाई १९९९ से अपना कार्यभार ग्रहण कर लिया। ___यह सचित करते हए हर्ष हो रहा है कि उनके आगमन से विद्यापीठ में एक नई चेतना आयी और अनेक गतिविधियाँ प्रारम्भ हुईं, जिनका विवरण इस प्रकार है १. हंसराज नरोत्तम व्याख्यानमाला : हंसराज नरोत्तम पारमार्थिक फण्ड के अनुदान से संचालित हंसराज नरोत्तम व्याख्यानमाला जुलाई माह से पुन: प्रारम्भ की गयी। इसके अन्तर्गत साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक व्याख्यानमालायें संयोजित करने का निश्चय किया गया। साप्ताहिक व्याख्यानमालाओं में संस्थान के ही अध्यापकों और शोध-छात्रों द्वारा प्रत्येक सप्ताह एक अथवा दो शोधपत्रों को प्रस्तुत करने का निश्चय किया गया। शेष पाक्षिक और मासिक व्याख्यानमाला के अन्तर्गत विविध विषयों पर सम्मानित विद्वानों द्वारा व्याख्यान आयोजित करने का उपक्रम निर्धारित हुआ। (१) साप्ताहिक व्याख्यानमाला : इसके अन्तर्गत २० अगस्त को Jaina Kosa Literature नामक विषय पर विद्यापीठ के वरिष्ठ प्रवक्ता डॉ० अशोक कुमार सिंह ने अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया। सितम्बर माह में तीन व्याख्यान प्रस्तुत किये गये, जिनका विवरण इस प्रकार है - २ सितम्बर; विषय- सादड़ी से प्राप्त पार्श्वनाथ की पञ्चतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख में उल्लिखित हेमतिलकसूरि कौन?; वक्ता - डॉ० शिव प्रसाद १५ सितम्बर; विषय- जैन साहित्य में निक्षेप सिद्धान्त; वक्ता- डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय। २४ सितम्बर; विषय-जैनपरम्परा में प्राप्त अनेक संधान काव्य वक्ता- डॉ० अशोक कुमार सिंह अक्टूबर माह में भी तीन व्याख्यान आयोजित किये गये -- ८ अक्टूबर; विषय- जैन कथा साहित्य के भेद-प्रभेद, वक्तृ - सुश्री अर्चना श्रीवास्तव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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