Book Title: Sramana 1999 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 190
________________ १८३ है प्राय: सभी गच्छों में अनेक विद्वान् आचार्य व मुनि हो चुके हैं। उनके द्वारा प्रणीत साहित्य विशाल है। आवश्यकता इस बात की है कि उक्त शोधकार्यों को आदर्श मानकर अन्य आचार्यों एवं उनकी कृतियों पर भी इसी प्रकार प्रामाणिक रूप से शोध कार्य किया जाये। प्रस्तुत पुस्तक की साजसज्जा अत्यन्त आकर्षक व मुद्रण त्रुटिरहित है। यह पुस्तक शोधार्थियों के लिये अत्यन्त उपयोगी व पुस्तकालयों व विद्वानों के लिये अनिवार्य रूप से संग्रहणीय और पठनीय है। हम आशा करते हैं कि साध्वीजी महाराज के इस कार्य से प्रेरणा लेकर अन्य आचार्यों व मुनिजनों के साहित्य पर भी इसी प्रकार से विद्वानों द्वारा शोधकार्य प्रारम्भ किया जायेगा। आस्था और अन्वेषण, सम्पा० श्री सुरेश जैन; प्रका०- ज्ञानोदय विद्यापीठ, भोपाल (म०प्र०); प्राप्ति स्थल- श्री अभिनन्दन दिगम्बर जैन हितो० सभा, बीना-४७०११३ (म०प्र०) एवं श्री सन्तोषकुमार जयकुमार जैन, बैटरी वाले, कटरा बाजार, सागर- ४७०००२ (म०प्र०); प्रथम संस्करण- १९९९ ई०; पृष्ठ १४+१३३; मूल्य - १०० रुपये। प्रस्तुत पुस्तक मुनिश्री क्षमासागर के पावन सानिध्य में २-४ अक्टूबर १९९८ में बीना में सम्पन्न हुए चतुर्थ जैन विज्ञान विचार संगोष्ठी-१९९८ में पढ़े गये ११ शोध निबन्धों तथा पूर्व की जैनविज्ञान विचार संगोष्ठियों में पढ़े गये १३ निबन्धों का संकलन है। क्लोनिंग और कर्मसिद्धान्त, निगोदिया जीव और आधुनिक जीवन विज्ञान, आशीर्वाद का विज्ञान, प्रार्थना से स्वास्थ्य लाभ, आधुनिक चिकित्सा पद्धति और अहिंसा, जीवन पद्धति और अनेकान्त, हमारी संस्कृति और समाज, ईश्वर की अवधारणा, जैन सिद्धान्तों द्वारा पृथ्वी की रक्षा आदि लेख अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। लेखों के अन्त में मुनिश्री के वर्ष १९९८ के बीना वर्षायोग के विभिन्न बहुरंगी चित्र भी दिये गये हैं। निश्चित रूप से यह पुस्तक विद्वानों और सामान्य पाठकों दोनों के लिये समान रूप से उपयोगी है। पुस्तक की साज-सज्जा अति आकर्षक तथा मुद्रण सुस्पष्ट है। अच्छे कागज पर मुद्रित इस ग्रन्थ का मूल्य भी अल्प रखा गया है ताकि इसका अत्यधिक प्रचार-प्रसार हो। ऐसे महत्त्वपूर्ण और मननयोग्य पुस्तक के प्रकाशन के लिये प्रकाशक संस्था की जितनी भी प्रशंसा की जाये, वह कम ही है। पथिक, मुनिश्री सुनीलसागर; प्रका०- श्रीपार्श्वनाथ दिगम्बर जैन पुस्तकालय एवं वाचनालय, भेलूपुर, वाराणसी; द्वितीय संस्करण- सितम्बर १९९९ई०; आकारडिमाई; पृष्ठ- १६+२७२; मूल्य - २५ रुपये मात्र। के युवा निर्ग्रन्थ मुनि श्री सुनीलसागर जी, आचार्य आदिसागर जी महाराज की परम्परा के चौथे पट्टधर आचार्य श्री सन्मतिसागर जी के शिष्य एवं उदीयमान साहित्यकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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