Book Title: Sramana 1999 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 52
________________ श्रमण / जनवरी-मार्च १९९९ किया गया है। ३८२ चुलसीती१ बावत्तरि २ (?) सट्टि ३ तीस४ दस वासलक्खाइं ५ | २९ सहस्साइं ६ छप्पन्ना ७ बारसे गं पण्णट्ठि ८-९ च।।२६ इसमें पूर्वार्द्ध में कोष्ठक के (य) को मूल गाथा में शामिल कर पादपूर्ति की गयी है। ४०० सुमइत्थ निच्चभत्तेणं निग्गओ, वासुपुज्जो जिणो चउत्थेण ।। ३५ पासो मल्ली वि य अट्टमेण, सेसा उ छट्टेणं ।। २७ इसमें पूर्वार्द्ध के सभी ओकार और एकार को विकल्प से लघु मात्रा मानी गयी है। ४११ चंपग २० बउले २१ वेडस २२ धावोडग (? धायइरुक्खे य) २३ सालते२४ चेव । २६ नाण्यांय रुक्खे जिणेहिं एए अणुग्गहिया ।। २८ । । इस गाथा में 'धावोडग' के बदले कोष्ठक में उल्लिखित प्रतिपाठ (धायइरुक्खे य) रखने से २९ मात्रा होती है । अन्त के एक लघु को गुरु मानकर छन्द पूरा किया गया है । दूसरे धायवृक्ष के लिए धायइरुक्खे' प्राकृत में मिलता भी है। उत्तरार्द्ध के अन्तिम मात्रा को लघु कर २७ मात्रा किया गया है। ४१६ ए क्कारसि १ एक्कारसि २ पंचमि ३ चाउद्दसी ४ य एक्करसी ५। ३० पुन्निम ६ छठ्ठी ७ पंचमि ८ ( पंचमि९) तह सत्तमी १० नवमी ११ ।। २३ यहाँ उत्तरार्द्ध पंक्ति विषय वर्णन की दृष्टि से भी अपूर्ण है। यहाँ कोष्ठक में उपलब्ध (पंचमि९) को मूल गाथा में शामिल कर पादपूर्ति की गयी है। कालागुरु- कुंदुरुक्कमीसेणं । ३० गंधेण मणहरेणं (?) धूवघडियं विउव्वेंति ।। २५ यहाँ उत्तरार्द्ध में कोष्ठक के (च) को गाथा में शामिल कर लेने पर तथा अन्तिम मात्रा को गुरु कर पादपूर्ति होती है । ४२७ तत्तो य समंतेणं ४४३ जे भवणवई देवा अवरद्दारे तओ (?) पविसंति । २८ तेणं चिय जोइसिया देवा दइयाजणसमग्गा ।। २७ यहाँ पूर्वार्द्ध में कोष्ठक के (य) को शामिल कर तथा अन्तिम मात्रा को 'गुरु' कर ३० मात्रा पूरी की गयी है । ४५१ एवं नवसु वि खेत्तेसु पुरिम- पच्छिम ( ग ) - मज्झिमजिणाणं । २९ वोच्छं गणहरसंखं जिणाण, नामं च पढमस्स ।। २६ यहाँ पूर्वार्द्ध के कोष्ठक के (य) को पादपूर्ति के लिए शामिल किया गया है। उसभजिणे चुलसीती (य) गणहरा उसभसेणआदीया १ । २९ अजियजिणिंदे नउतिं तु, सीहसेणो भवे आदि२ ।। २७ ४९ ४५२

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