Book Title: Sramana 1999 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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नागपुरीयतपागच्छ का इतिहास कौटिकगणे। वइरीशाखायां । चंद्रकुले । पूर्वं श्रीमद्गृहद्गच्छे सांप्रतं । प्राप्त नागपुरीय तपा इति प्रसिद्धावदाते । वादि श्री देवसूरिसंताने । भ० श्री चन्द्रकीर्तिसूरिवरास्तेषां पट्टे सर्बन जेगीयमानकीर्ति भ० श्रीमानकीर्ति सूरि पुरंदरास्तेषां शिष्या आचार्य श्री श्री ५ अमरकीर्तिसूरयस्तेषां शिष्येण मुनिधर्माह्ययेन लिपीचक्रे ।
अमृतलाल मगनलालशाह, संपा०, श्रीप्रशस्तिसंग्रह, श्री जैनसाहित्य प्रदर्शन, श्री देशविरति धर्माराजक समाज, अहमदाबाद वि० सं० १९९३, भाग २, प्रशस्ति क्रमांक ६२८, पृष्ठ १५९-६०.
१५.
प्राचीन पुस्तकोद्धार फंड, ग्रन्थांक ३५, जिनदत्तसूरि ज्ञान भंडार, सुरत वि० सं० १९८५ / ई० सन् १९२९.
श्रीवज्रसेनस्य गुरोस्त्रिषष्टिसारप्रबंधस्फुटसद्गुणस्य ॥ शिष्येण चक्रे हरिणेयमिष्टा, सूक्तावली नेमिचरित्रकर्ता ॥
कर्पूरप्रकर की प्रशस्ति, प्रकाशक- बालाभाई कलक भाई, मांडवीपोल अहमदाबाद वि० सं० १९८२ / ई० सन् १९२६.
१७.
मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग २ (प्राचीन संस्करण, पृष्ठ ६५६.
१६.
१८-१९. द्रष्टव्य संदर्भ क्रमांक १ और २
२०.
ग्रहभावप्रकाशाख्यं शास्त्रमेतत्प्रकाशितम् ॥ लोकानामुपकाराय भुवनदीपक का अंतिम श्लोक.
प्रकाशक- गंगाविष्णु श्रीकृष्णदास, श्रीलक्ष्मी वेंकटेश्वर स्टीम प्रेस, बम्बई वि० सं० १९९६ / ई० स० १९३९.
श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः ॥ १७० ॥
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