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श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९९ कर्मठ, निष्ठावान, आन्दोलनकारी कार्यकर्ता श्री सुरेशचन्द जैन, जबलपुर। ४. अहिंसा इन्टरनेशनल रघुबीर सिंह जैन जीवरक्षा पुरस्कार-११००००/
निडर, कर्मठ, निष्ठावान आन्दोलनकारी कार्यकर्ता श्री मुहम्मद शफीक खान,
सागर। ५. अहिंसा इन्टरनेशनल गोल्डनजुबली फाउंडेशन पत्रकारिता पुरस्कार-५१०००/
डा० नीलम जैन , सहारनपुर। जैन महिलादर्श की प्रधान संपादिका एवं समाजसेवी, विदुषी पत्रकार, लेखक, वक्ता एवं सफल कार्यक्रम संयोजक। पुरस्कार मार्च/अप्रैल १९९९ में नई दिल्ली में भेंट किये जाएंगे।
श्री गणेश प्रसाद वर्णी स्मृति साहित्य पुरस्कार श्री स्याद्वाद महाविद्यालय, भदैनी, वाराणसी की ओर से अपने संस्थापक पूज्य श्री गणेश प्रसाद जी वर्णी की स्मृति में वर्ष १९९९ के पुरस्कार के लिये जैनधर्म-दर्शन, सिद्धान्त, साहित्य, समाज, संस्कृति, भाषा एवं इतिहासविषयक मौलिक, सृजनात्मक, चिन्तन, अनुसंधानात्मक, शास्त्रीय परम्परा युक्त कृति पर पुरस्कारार्थ ४ प्रतियाँ ३० अप्रैल ९९ तक आमंत्रित हैं। इस पुरस्कार में ५००१/- रूपया तथा प्रशस्ति पत्र दिया जायेगा। १९९६ के बाद प्रकाशित पुस्तकें ही इसमें सम्मिलित की जायेगी। नियमावली निम्न पते पर उपलब्ध है।
(डा० फूलचन्द जैन "प्रेमी") संयोजक, श्री वर्णी स्मृति साहित्य पुरस्कार समिति
श्री स्याद्वाद महाविद्यालय, भदैनी, वाराणसी पंचाल शोध संस्थान, कानपुर का तेरहवां सम्मेलन कायमगंज में
१३-१४ मार्च १९९९ : पंचाल शोध संस्थान, कानपुर का तेरहवां वार्षिक अधिवेशन कायमगंज, जिला फर्रुखाबाद, उत्तरप्रदेश में दि० १३-१४ मार्च १९९९ को आयोजित किया गया जिसमें बड़ी संख्या में विद्वानों के भाग लेने की सूचना मिली है। इस अधिवेशन में क्षेत्र की विशिष्ट विभूतियों को पंचालरत्न, पंचालभूषण, पंचालश्री एवं साहित्यवारिधि के अलंकरणों से सम्मानित किया गया। महान् साहित्यप्रेमी और प्रसिद्ध उद्योगपति श्री हजारीमल जी बांठिया की प्रेरणा से भारत और इटली की सरकारों के सहयोग से इसी वर्ष से पंचाल जनपद की राजधानी काम्पिल्य (कंपिल) में बड़े पैमाने पर ४ वर्षीय उत्खनन कार्य भी आरम्भ होने जा रहा है। भारत और इटली के शीर्षस्थ पुरातत्त्वविदों के निर्देश में प्रारम्भ हो रहे इस उत्खनन से भारतीय सभ्यता के इतिहास पर नवीन प्रकाश पड़ने की पूरी संभावना है।
डॉ० शैलेन्द्र रस्तोगी ज्ञानोदय पुरस्कार - ९८ से सम्मानित
श्रीमती शांतादेवी रतनलालजी बोबरा की स्मृति में श्री सूरजमल जी बोबरा द्वारा वर्ष १९९८ में कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर के माध्यम से इतिहास एवं पुरातत्त्व के क्षेत्र