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श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९९ करने से छन्द पूर्ण हुआ। ७६४ दुपु (? उग्घु) तुमहुरकंठं सो परियट्टेइ ताव पाढमयं । २९
भणियं च नाहिं 'भाउग! सीहं दवण ते भीया' ।। २८
यहाँ पूर्वार्द्ध में दुपुट्ठ की जगह उग्घुट्ठ करने से छन्द पूर्ण हो जाता है। ७७१ एतेहि नासियव्वं सए वि णाए वि जह (?) सासणे भणियं। ३२
जं पुण मे अवरद्धं एवं पुण डहति सव्वंगं ।। २७
यहाँ पूर्वार्द्ध के द्वितीय चरण में दोनों एकार को लघु कर छन्द पूरा किया गया है। ७८५ अह भणइ थूलभद्दो गणियापरिमलसमप्पियसरीरो ।३०
'सामी ! कयसामत्थो पुणो (वि) भे विण्णवेसामि' ।।२५।।
यहाँ (वि) को पादपूर्ति रूप में शामिल किया गया है। ८०७ एयस्स पुव्वसुयसायरस्स उदहि व्व अपरिमेयस्स । २९
मुणसु जह अथ (?इत्थ) काले परिहाणी दीसते पच्छा ।।२६
यहाँ 'अर्थ' के स्थान पर 'इत्थ' शब्द रखने पर अर्थ और मात्रा दोनों पूर्ण हो जाती है। ८१४ समवायववच्छेदो तेरसहि सतेहिं होहि वासाणं ।३२
माढरगोत्तस्स इहं संभूतजतिस्स मरणम्मि ।। २६
यहाँ तृतीया बहुवचन रूप तेरसहिं सतेहिं को अनुस्वार रहित रूप कर देने से मात्रा पूर्ण हो जाती है। ८२४ चंकमिउं वरतरं (?तरयं) तिमिसगुहाए व मंधकाराए । २९
न य तइया समणाणं आयारसुते पणट्ठम्मि ।। २६
यहाँ पूर्वार्द्ध में 'वरतरं' को 'वरतरयं' करने पर मात्रा पूर्ण हुई है। ८२६ वीसाए सहस्सेहिं पंचहिं य सतेहिं होइ वरिसाणं ।३३
पूसे वच्छसगोत्ते वोच्छेदो उत्तरज्झाए ।। २७
यहाँ तृतीय बहुवचन के रूपों ‘सहस्सेहिं, पंचहिं, सतेहिं को अनुस्वार रहित करने से मात्रा पूर्ण हुई है। ८२७ वीसाए सहस्सेहिं वरिससहस्सेहिं (? वरिसाण सएहि)नवहिं वोच्छेदो । ३३
दसवेतालियसुत्तस्स दिण्णसाहुम्मि बोधव्यो ।। २७ यहाँ 'वरिस सहस्सेहिं' शब्द अर्थहीन है। उसकी जगह वरिसाण सएहिं विषय