Book Title: Sramana 1998 01 Author(s): Ashokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi View full book textPage 5
________________ २ श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९८ प्रारम्भ में भी नमस्कार मन्त्र का निर्देशन मिलता है (ॐ नमो तित्थस्स । ॐ नमो अरहंताणं ।)२ __ भगवतीसूत्र एवं प्रज्ञापना के प्रारम्भ में पञ्चपदात्मक नमस्कारमन्त्र का निर्देश तो है, किन्तु यह उनका अङ्गीभूत अंश है अथवा प्रक्षिप्त अंश है, इसको लेकर विद्वानों में मतभिन्न देखा जाता है। कुछ विद्वानों का कहना है कि प्रज्ञापना के टीकाकार मलयगिरि इसकी कोई टीका नहीं करते हैं, इसलिए यह मन्त्र उसका अङ्गीभूत मन्त्र नहीं है। इसे बाद में मङ्गल सूचक आदि वाक्य के रूप में जोड़ा गया है, अत: प्रक्षिप्त अंश है। यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि यद्यपि भगवतीसूत्र के प्रारम्भ में पञ्चपदात्मक नमस्कारमन्त्र तो मिलता है, किन्तु उसकी चूलिका नहीं मिलती है, उसके स्थान पर 'नमो बंभी-लिविए' यह पद मिलता है। अत: यह कल्पना की जा सकती है कि ब्राह्मीलिपि के प्रति यह नमस्कारात्मकपद तभी उसमें जोड़ा गया होगा, जब इस ग्रन्थ को सर्वप्रथम लिपिबद्ध किया गया होगा। भगवतीसूत्र के पश्चात् प्रज्ञापनासूत्र में भी पञ्चपदात्मक नमस्कारमन्त्र उपलब्ध होता है। किन्तु प्रज्ञापनासूत्र निश्चित ही ईसा की प्रथम शताब्दी के लगभग निर्मित हुआ है। अत: इस आधार पर केवल इतना ही कहा जा सकता है कि ईसा की प्रथम शताब्दी तक पञ्चपदात्मक नमस्कारमन्त्र का विकास हो चुका था। जहाँ तक महानिशीथ का प्रश्न है यह स्पष्ट है कि उसकी मूलप्रति दीमकों से भक्षित हो जाने पर आचार्य हरिभद्र ने ही इस ग्रन्थ का पुनरोद्धार किया। हरिभद्र का काल स्पष्ट रूप से लगभग ईसा की ७वीं-८वीं शताब्दी माना जाता है। अत: महानिशीथसूत्र में चूलिका नमस्कारमन्त्र की उपस्थिति उसकी विकास यात्रा को समझने में किसी भी प्रकार सहायक नहीं होती है। महानिशीथरे में जो यह बताया गया है कि ‘पञ्चमङ्गल महाश्रुतस्कन्ध का व्याख्यान मूलमन्त्र की नियुक्ति भाष्य एवं चूर्णि में किया गया था और यह व्याख्यान तीर्थंकरों से प्राप्त हुआ था। काल दोष से वे नियुक्तियाँ, भाष्य और चूर्णियाँ नष्ट हो गईं। फिर कुछ समय पश्चात् वज्रस्वामी ने नमकार महामन्त्र का उद्धार कर उसे मूल सूत्र में स्थापित किया। यह वृद्धसम्प्रदाय है।' यह तथ्य नमस्कारमन्त्र के रचयिता का पता लगाने में सहायक होता है। यद्यपि आवश्यक नियुक्ति में वज्रस्वामी के उल्लेख में इस घटना का निर्देश नहीं है, फिर भी इससे दो बातें फलित होती है- प्रथम तो यह कि हरिभद्र के काल तक यह अनुभूति थी कि नमस्कार महामन्त्र के उद्धारक वज्रसूरि थे और दूसरे यह कि उन्होंने इसे आगम में स्थापित किया। इसका तात्पर्य यह भी है कि भगवतीसूत्र में नमस्कारमन्त्र की स्थापना वज्रस्वामी ने की और वे ही इसके उद्धारक या किसी अर्थ में इसके निर्माता हैं। वज्रस्वामी का काल लगभग ईसा की प्रथम शती है। संयोग से यही काल अंगविज्जा का है। खारवेल का अभिलेख इससे लगभग १५० वर्षPage Navigation
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