Book Title: Sramana 1994 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 2
________________ प्रधान सम्पादक प्रो. सागरमल जैन सम्पादक डा० अशोक कुमार सिंह सहसम्प डा० शिवप्रः - वर्ष ४५ जुलाई-सितम्बर १९९४ ... अंक - - प्रस्तुत अंक में १. कर्म की नैतिकता का आधार-तत्त्वार्थसूत्र के प्रसङ्ग में __--- डॉ. रत्ना श्रीवास्तव २. रामचन्द्रसूरि और उनका साहित्य - डॉ० कृष्णपाल त्रिपाठी १०३. प्राकृत की बृहत्कथा "वसुदेवहिण्डी" में वर्णित कृष्ण -~-डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव .... २३४. मडाहडागच्छ का इतिहास : एक अध्ययन -डॉ० शिवप्रसाद ३१-. ५. सन्दर्भ एवं भाषायी दृष्टि से आचारांग के उपोद्धात में प्रयुक्त प्रथम वाक्य के पाठ की प्राचीनता पर कुछ विचार -- डॉ० के० आर० चन्द्र ५२-1 बारह भावना : एक अनुशीलन -डॉ० कमलेश कुमार जैन ५६५ साहित्य समीक्षा जैन जगत् - - यह आवश्यक नहीं कि लेखक के विचारों से सम्पादक व संस्थान सहमत हों। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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