Book Title: Six Philosophical Buddhist Tracts
Author(s): Asiatic Society of Bengal
Publisher: Asiatic Society of Bengal

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Page 9
________________ 163 अभिमतेच-जोशहदपकृत्ताकाशब्देन दोषस्याप्यभिधी--- नमुचितम् / न चाऽज्यापोढान्यापोहयोर्विरोधो बिशेष्य -- विशेषणप्रतिर्वा, परस्पर व्यवच्छे दाभावात, सामानाधिकभारण्यसद्भावात, भूतलघराभाववत् / स्वामानेन हि.---- विरोधो ने पराभावनत्याबालप्रसिद्धम् / एज पन्थाः सूनमुपतिष्ठत इत्यत्राप्यपोहो गम्यत एव; अप्रकृय --- प्राधान्तरापेक्षया एष एव / श्रुक्षप्रत्यनीकानिष्ट स्थान-- पेक्षया भूप्नमेव / अरण्यमार्गवत् विच्छेदामावादुपतिधत एव / सार्थदूतादिव्यवच्छेदेन फल्था एवेति प्रति-- पदम् व्यवच्छेदस्य सुलभत्वात् / तस्मादपोहधर्म--- जो विधिरूपस्य शब्दादवगतिः, पुण्डरीक शब्दादिव - श्वेतिमविशिष्टस्य पास्य / यद्येवं विधिरेव शब्दा थो वक्त मुचितः / कथमपोहो गीयत इति चेत् / उक्तमत्राऽपोहशब्देनाध्यापोह निशियो बिधिरुष्यते, तत्र विधी प्रतीयमाने विशेषणतया तुल्यकालमन्यापोह प्रतीतिरिति / नचैवं प्रत्यक्षस्याऽप्यपोहविप्रयत्वव्यवस्था कर्तृमुचिता; तस्य शब्दप्रत्ययस्येव वस्तुविषयत्वे विवादाभावात् / विधिशब्देन च फणभावर /

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