Book Title: Six Philosophical Buddhist Tracts
Author(s): Asiatic Society of Bengal
Publisher: Asiatic Society of Bengal
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________________ ====शब्दानामपत्यायनयकारी छन तहष्ट-इन-अस्वादि== ------ शब्यापेक्षा न स्यात; विचित्रशक्तित्वात् एमाणा - -- नामिति। तदप्यन्द्रियकशाब्दप्रतिभासयो रकस्वरूप-... -----------गाहित्वे भिन्नावभास दूषणन मितम् ) विचित्रशक्ति -- त्वंच प्रमाणानां साक्षात्काराध्यवसायाभ्यामपि चरि-- ----- नार्थम् / ततो यदि प्रत्यता प्रतिपादनं शाब्देन ..... तहदेवावभासः स्यात। अमेवाच न तद्विषय रव्यापनं क्षमते। ननु वृक्षाब्देन वृसत्वांशे चोदिते सत्वायंदा निश्चयनार्धमस्त्यादिपरप्रयोगः इति चेत ) निरंवात्वेने प्रत्यससमधिगतस्य स्वलजस्य कोऽवकाशः पदान्तरेण / धर्मान्तर विधिनिघेधयो: प्रमाणान्तरेण वा / प्रत्यापि प्रमाणान्तरापेक्षा दृष्रेति चेरी भवत् तस्याऽनिश्चयात्मत्वात् अन भ्यस्तस्वरुपविषये; विकल्पस्त स्वयं निधयातको नियन गाही तत्र किमपणी [10] अस्ति च बाब्यलिङ्गान्तरापेक्षा ततो न वस्तस्वरुपगृहा। जन भिन्ना जात्यादयो धर्माः परस्परं धर्मिणश्येति जातिलसकधर्मद्वारेण प्रतीतेऽपि शाखिनि धर्मान्तरःफ पञ्चम्यन्तमैतत
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