Book Title: Siddhant Sar Author(s): Gambhirmal Hemraj Mehta Publisher: Gambhirmal Hemraj Mehta View full book textPage 9
________________ ५ "" यावशे. इत्यादि गुरुनां वचन सांजली बहु जन सम्मत एवा जिखुनजी बोल्या, स्वामी ! अमने जे जाप्युं वे ते खरं नायुं बे घने खरानो दंग होय नही. माटे फेंक देवानी बात हवेथी आपने करवी लाजम वे श्रापना के देवा प्रमाणे दंग लेवाना पण नथी. श्रमारुं तो आपने एम के बेके, आपने जो आत्मार्थनी इच्छा होय तो एटला दीवस खोटी श्रद्धा परुपणा करी साधु आचार्यना गुण विना मात्र नाम धराव्यां तेनुं प्रायश्चित करो अमारा केदेवा प्रमाणे सत्य श्रद्धाधारी मग्पतिपणुं ainी फरीथी दिक्षा ग्रहण करो, तो तमे अमारा गुरु ने श्रमे तमारा शिष्य, नहिं तो दवे श्रमे श्रमारुं धार्युं काम करवाना बीए. पढी केहेशो के ामने पेलुं कर्तुं नदी तेथी को दरशावुं बुं. एवी रीते उलटा गुरुने उपदेशवा मांरुया. त्यारे श्री गुरुए जाएयुं के, या जीवनो होपाहार एवोज मालुम पके बे माटे समजवो मुश्केल ढे. तो हवे एने सामील राखवो शा कामनो. एम धारी " निखुन समुदाय बाहार बे' एवो हुकम प्रगट की धो. त्यारे निखुनजी जाणे के "गुरुसें कपट साधसें चोरी, के हुवे नीर्धन के दुवे कोढी " श्रा वचनने संज्ञारी बोलता होय ने, तेम बोल्या. जो स्वामी ! आप मने एकलो जाली समुदाय बादार काढता दशो पण तेम नथी. मारे सामील बीजा पण महत्गुणी साधुजन बे. माटे थापे मने समुदाय बाहार काढवानुं काभ वीचार पूर्वक करवानुं बे. यावां निखुनजीनां वचन शांजली नजिक प्रणामी श्रीगुरु तेमने कहेता हवा. हे वत्स ! एक हो, गमे तो घणा हो, तेनी अमारे दरकार नथी, तथापी तमे जुदा जुदा नाम धोने, - देखीयें तमारी सामील कोण कोण साधु बे. त्यारे जिखुनजीए नांखा नोखा नाम देश बताव्या. ते शांजली श्री गुरु इशत धर्मानुराग रुप सरागवसे चिंता मसीत थया; पण बीगमयो पान बोगाने चोली, बीगमयो साध बीगाने टोली " श्रा वचनना अनुसारे तेमने संवत्सर १८१५ ना चैतर सुद ए सुक्रवारना दीवसे समुदाय बाहार कर्या. ते पण गुरुकुल वास बोकी वीदार करी अन्यत्र जता हता. एवामां मादा 66Page Navigation
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