Book Title: Siddhant Sar Author(s): Gambhirmal Hemraj Mehta Publisher: Gambhirmal Hemraj Mehta View full book textPage 8
________________ ४ दर्शा लूँ. एवी रीते बोलता जिखूनजी प्रत्ये नकि प्रणामी एवा श्री गुरुए यथायोग्य दंग प्राप्यो. ते द्रव्यथी तो लीधो पण प्रणाम मिथ्यात्व न मढ्यो, तेथी बली पूर्वोक्त रीतीथी विशेषतः अनेक देतु युक्तिथी दया- दान विषे जेदोत्पादक वचन जालमां विशेष करी जोला अप साधुर्जने फसाववा शरु कर्या. ते वात वली पण पुज्यश्रीना जाणवामां श्राव्याची पूर्वोक्त रोते तेमने समजाव्या, पण सेदेजसाजमां ad समस्या नहि. त्यारे तेमने इसत आक्रोश करी केहेतुं पयुं के, जेम कोइ मगजनुं फाटेल गणीतज्ञ, एकमा बगमानां जणवामां माल नथी एम कड़े, पण एतेनुं केहेतुं विद्वजन मंगलमां अप्रमाण थाय; कारण के न्यायथी जोतां प्रथम एकमा बगमा शीखवा ते विशेष गीतज्ञ थवानुं समवाइक मूल कारण बे, तेम तमारे पण समज के, अनुकंपा रुप दया दान ते उंचली दशा पोहोंचामवानां कारण बे. तमे कारणनुं निषेध केम करो हो ? कारण के कारण विना कार्य नथी यतुं . यतः पुर्वात पुर्वात कारणं, पश्चात पश्चात कार्य इति वचनात. इत्यादि गुरुएक एटले बीजोवार पण श्री गुरुना के देवा प्रमाणे दंग लइने गुरुथी जुदा न पकतां सामील रद्दीने अंदर अंदरखाने निखूनजी साधु ने खूब बेकाववा मांड्या. जावी वसात् साधु पण घणा वेदे की निखूनजी ने सहमत थया ने प्रवन्न विचार करी राख्यो के, ज्यारे पुज्यजी आपने बेने त्यारे दवे बचोक र प्रथम तो तेमने विनय पूर्वक सत्य श्रद्धा अर्ज निवेदन करवी. तेम करतां ते न माने तो तेमने पमता मुकी आपणे श्रापषो धारेला सत्य मार्ग प्रचलित करवो, तेवो द्रढ निश्चय कर्यो. पढी ग्राम बगीने विषे पुज्यश्रीनो गारो थयो ते अवसरे पुज्यश्रीए फरमाव्यं के, जिखुनजी तमे इजी सुधी पण कपोल कल्पीत श्रद्धा तेमज तेनी परुपणा बोकी नथी. वास्ते या बेल्लीवार तमने कहेवामां आवे छे के, कां तो तमे तमारी मिथ्या श्रद्धा परुपणा बोमी सत्य अंतःकरणथी प्रायश्चित ब्यो, नहिं तो हवे तमने समुदायथी बाहार करवामां 氯Page Navigation
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