Book Title: Siddhant Sar
Author(s): Gambhirmal Hemraj Mehta
Publisher: Gambhirmal Hemraj Mehta
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वायुना योगे ते गामना बाहार बत्रीमा रह्या. ते पुज्यश्रीना जाणवामां
आवतां करुणाशील पवीत्र प्रीतीयत्नाव धारण करता थका तेमने समजाववा खातर सांमे पधार्या. त्यां गुरु चेलाने यथा संनवती चर्चा वार्ता थर, पण निखुनजीए विना समजे विहार कर्यो. ते अवसरे जिखुनजीना साथे केटला साधु नोकल्या एकां चोकस नथी, पण सांजल्या प्रमाणे तेर साधु नीकल्या केहेवाय जे. तेमांथी श्रीमान रुपचंदजी खामी श्रादि गणां बे को निमित्त कारण जोगे तेमनी असत् श्रद्धान हृदये न बेसवाथी थोमा वखतमांज, जिखुनजीने बोमी पुज्यश्रीने मली पुन्यक्षेत्र श्री पालणपुर क्षेत्रने पवित्र कयु. मुख्य करी वृद्धावस्थादि संयोगे पालणपुर बीराजमान रह्या, थने तेज शेहेरमां शुक्ल संवत् १८५५ ना पासो वद ना दीवसे अणसण पूर्वक देहोत्सर्ग को. ए माहात्मा श्री समकितसारना कर्ता श्रीमन प्रवरपंमीत वादलब्धीसंपन्न श्रुतबली श्रीयुती जेष्टमखजी स्वामीना धर्मगुरु हता. ते निखुनजोनो साथे नीकलो पाला श्रावेल तेथी तेमनो संक्षीप वृतांत प्रसंग पाम) अहिं नपयुक्त जाणो लख्युं . . हवे ते निखुनजी शेष साधु रह्या ते साथे देश नगर ग्रामादिकने विषे खुली रीते दया दान उथापवा रुप अनेक वचनजाखमां अनेक जीवोने फसाववा मांड्या अने पोताना गुरुवादिकने व्रष्ट नागल, पमवार, पाखंझी, इत्यादिक अनेक जातनी गालो चोपमावा मांमया. ते देखो अन्यान्य समुदायस्थ परोपकारी गीतार्थ साधुजनो तेमने समजाववाने निमित्ते तेमनी साथे शास्त्रार्थ चर्चा करी वखतो वखत पराजय (खष्ट) करवा लाग्या, पण जेम तुमि ग्रहस्थित मनुष्यने सुर्यनी किरणनो जोशएतेवो प्रकाश न थाय, तेम पूर्वोक्त महामुनीरुप सुर्य, कथनोरुप किर्ण अने अनिनिवेष मिथ्यात्वरुप नुमिग्रह, तेमां लिखुनजी रहेला तेथी ब्रमरुप तीमीर नाश क्याथी थाय ? निखुनजी शास्त्रार्थमा हारे तोपण कहे के, मारी बुद्धिनी खानीथी हुँ पराजय पामुं बु, बाकी वात तो ढुं कहुं तेज सत्य बे. एवी रीते कही मूख

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