Book Title: Siddhant Sar
Author(s): Gambhirmal Hemraj Mehta
Publisher: Gambhirmal Hemraj Mehta

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Page 7
________________ बे. तेनो पण परमार्थ जाएया वगर एमनो एम एकान्त बुद्धिए एवो निश्चय करी लीधो के, साधु सिवाय कोई संयति न कदेवाय, असंयतिज बे. माटे साधु सिवाय बीजा कोइने पण आयामां निर्जरा के पुन्यरुप नफो नथी. जे थापे बे तेने एकान्त पाप लागे छे. एवी रीते परंपराय परम कल्याणकारक मोक्षना प्र म द्वाररुप दाने विषे पण अश्रद्धा उपनी. एवी रीते दयादान विषे ग्रहस्थीना निमीत्त पूर्वक अश्रद्धा वाथी निखूनजीने अनेक दोला उत्पन्न यवा मांड्या. ते समिप-वर्ती साधुजनोने किंचीत् प्रगटरूपे केदेवा मांड्या, तेथी ते साधुर्जनां मन पण शंकाशील थर गया. एम करतां कोइक अवसरे पुज्यश्रीने ते बाबत जाणवामां आवतां निखुनजीने पूर्वोक्त सोजत शेहेरने विषे हितमित मधुर वचने समजाव्या के " हे वत्स ! पूर्वोक्त सूत्रार्थनो तमने यथार्थ अवबोध नथी थइ शक्यो तेथी तमने तेम नाषे बे, पण तेनो एवो अर्थाशय नथी. तमे पोतेज जरा दीर्घष्टिथी विचारो के, जो एम होय तो तो दया दान ए धर्मना मूल भूत मुख्य अंग उठी जाय; छाने ज्यारे ए उठी जाय त्यारे श्रार्य (मोक्ष) मार्गनो श्राव थइ जाय. एम क्रम पूर्वक नास्तिक थवा दहामो धावे. माटे हे आर्य ! तमे जे अनंत अरिहंत सिद्धना अनि प्रायथी विरुद्ध अभिप्राय कल्प्यो तेनो दंग (प्रायश्चित) अंगीकार करो छाने हवे पीथी एवं स्व-मनिषा जनित अभिप्राय कल्पि अन्य जीवोने शंकाशील नहीं करवानी प्रतिज्ञा ब्यो. " ए वात निखुनजीना मनमां तो न रुची, पण अवसर एवा जिखुनजीए विचार्यु के, यदि दमणां हुं मारा मानसिक प्रढनिश्चय प्रगट करीश तो ए गुरु मने समुदाय बादार काढी मुंकशे, अने विना मदद हुं एकलो रखमी मरो जश. मारो जे उद्देश बे ते निष्फल जशे, तेथी दमणां तो गुरुने इच्छानुं लोम (मनने अनुसारे) जाषा बोलवी योग्य बे. एम धारी वंज- प्रीय निखूनजी बोल्या के, दे स्वामी ! मारी जुल आपने जाषी तेथी हुं कमापात्र डं. माटे आपने गमशे ते दंग मने पशो ते लेवा हुं खुसी

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