Book Title: Siddhant Sar
Author(s): Gambhirmal Hemraj Mehta
Publisher: Gambhirmal Hemraj Mehta

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Page 5
________________ प्रस्तावना. K श्लोक. स्यामादो वर्तते यस्मिन्, पक्षपातो न विद्यते; नास्तन्य पिकनं किंचि, जैन धर्मस उच्यते ॥ १ ॥ श्री युती सकल श्रमण संघ (साधु, साध्वी, श्रावक ने श्राविका सम्यकदृष्टि मार्गानुसारी सजन जव्य जनो) ने विदीत करवामां या केः-वर्तमानमां ढुंगा श्रवसर्पणी प्रवर्ते बे, तेना प्रजावथी आश्चर्यत (न थवानी ) अनेक वातो थर, घर रही बे, अने थवानी नवाइ नथी. तेमज अनेक कूपंथ प्रगट थया, थाय बे अने वली पण थवानी नवाइ नथी.. श्री बाब मां विशेष लखवानी यावश्यकता नथी; कारण के या बाबत जैन वर्गना नाना नाना बालक पण प्राय जाणे. बे. वास्ते प्रयोजन नूत फक्त लखोए बीए के : --- पूर्वोक्त हुंका अवसर्पणीना प्रजावे अनेक मत मतान्तर प्रगट य गयेला बे. तेमां संवत १८१५ नी सालमां एक तेरापंथी नामनो पंथ दृष्टेष्ट विरुद्ध श्री जिन सासनने धूम्रकेतु शाहश्य प्रगट थयो. दवे के पंथ शाकारणे अनेकया पुरुषना निमीत्तथी प्रगट थयो ते, अने ते पंथस्थ मनुष्योनो शो मन्तव्य बे ते सत्य सनातन धर्माजिलाषी मध्यस्थ जनोने जाणवा सारु अति संक्षिप्त टुंक वृतांत नीचे लखवामां आवे छे. अथ श्वेताम्बर तेरापंथ मतोत्पति. संवत १७०८ नी सालना घरसामां श्री मरुधर ( मारवार) देशने विषे बावीस समुदायस्थ परम पुज्य सुगुण संपन्न क्रत पुन्य श्री श्री १००८ श्री श्री रघुनाथजी स्वामी घणा सुशिष्योना परिवार चोख्खे विहारे करी विचरता दता. तेथ्यो साहेबनी समिपे मारवामां आवेल अति प्राचीन शेहेर सोजत बगमीने नजदीक गाम कंटालीखाना वासी

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