Book Title: Siddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Author(s): Santlal Pandit
Publisher: Shailesh Dahyabhai Kapadia
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. [१३] कर्माष्टकेध्मवयमुत्पथमाशु हुत्वा सद्ध्यानवह्रिविसरे स्वयमात्मवन्तम्। निःश्रेयसामृतसरस्यथ संनिनाय, तं सिद्धमुच्चपददं परिपूजयामि।
ॐ ह्रीं अष्टकर्मकाष्ठगणभस्मीकृते सिद्धपरमेष्ठिने अर्घ निर्व. स्वाहा। स्वचारषञ्चकमपिस्वयमाचरन्ति,ह्याचारयन्तिभविकान्निजशुद्धिभाजः तानर्चयामिविविधैः शललादिभिश्चप्रत्यूहनाशनविधौ निपुणान्पवित्रैः
ॐ ह्रीं पञ्चाचारपरायणाय आचार्यपरमेष्ठिने अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। अंगांगवाह्यपरिपाठनलालसाना-मष्टांज्ञानपरिशीलनभावितानाम्। पादारबिन्दयुगलं खलु पाठकानां शुद्धजलादिवसुभिः परिपूजयामि॥ ॐ ह्रीं द्वादशांगपठनपाठनोद्यताय उपाध्यायपरमेष्ठिने अर्घ निर्व. स्वाहा। आराधनासुखविलासमहेश्वराणां सद्धर्मलक्षणमयात्मविकस्वराणां। स्तोतुतुंगुणागिरिवनादिनिवासिनांवैएषोऽद्यतच्चरणपीठभुवंनमामि ॐ ह्रीं त्रयोदशप्रकारचारित्राराधकसाधुपरमेष्ठिने अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
अर्हन्मंगलमर्चामि जगन्मंगलदायकम्। . प्रारब्धकर्मविघ्नौघप्रलयाय पयोमुखम्॥ .. ॐ ह्रीं अर्हनङ्गलाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। चिदानन्दलसद्वीचिमालिनं गुणशालिनम्। . सिद्धमंगलमर्चेहं सलिलादिभिरुज्वलैः॥
ॐ ह्रीं सिद्धमंगलाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। बुद्धिक्रियारसतपोविक्रियौषधिमुख्यकाः।
ऋद्धयो यं न मोहन्ति साधुमंगलर्चये॥ ___ॐ ह्रीं साधुमंगलाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। लोकालोकस्वरूपं च प्रज्ञप्तं धर्ममंगलम्। . अर्चे वादित्रनिर्घोषगीतनृत्यैः वनादिभिः॥ ॐ ह्रीं केवलिप्रज्ञप्तधर्ममंगलाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।

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