Book Title: Siddh Hemchandra Vyakaranam
Author(s): Himanshuvijay
Publisher: Anandji Kalyanji Pedhi

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Page 1018
________________ . स्वोपचिसहितम् [८१३] भ्यसो हुँ। ८।४ । ३३७ । अपभ्रंशे अकारात्परस्य भ्यसः पञ्चमीबहुवचनस्य हुँ इत्यादेशो भवति । दुरुड्डाणे पडिउ खलु अप्पणु जणु मारेह। जिह गिरि-सिगडं पडिअ सिल अन्तु वि चूरु करेइ ॥ ३३७ ॥ ड्सः सु-हो-स्सवः । ८।४।३३८ । अपग्रंशे अकारान्परस्य सः स्थाने सु हो स्सु इति त्रय आदेशा भवन्ति। जो गुण गोवह अप्पणा पयडा करह परस्सु। तसु हउं कलि-जुगि दुल्लहहो बलि किजउं सुअणस्सु ॥ ॥३३८॥ . आमो हैं । ८.1४ । ३३९ । । । अपभ्रंशे अकारात्परस्यामो हमित्यादेशो भवति । तणहं सइबी भङ्गि नवि में अधड-पडि पसन्ति । अह जणु लाग्गे वि उत्तरइ अहसह सई भजन्ति । हुं चेदुद्भयाम् । ८॥ ४ । ३४०१ अपभ्रंशे इकारोकाराभ्यां परस्यामो हुं हं चादेशौ भवतः। दइबु घडावह वणि तरुहुँ सउणिहं पक्क फलाई ।। सो वरि सुक्खु पट्ट गवि कण्णहिं खल-वयणाई। प्रायोधिकारात् क्वचित्सुपोपि हुँ। धवलु धिसूरइ सामिअहो गहना भरु पिक्खेधि । हउं कि न जुत्तउ दुई दिसिहि खण्डहं दोषिण करेवि ॥ ३४०॥

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