Book Title: Siddh Hemchandra Vyakaranam
Author(s): Himanshuvijay
Publisher: Anandji Kalyanji Pedhi

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Page 1033
________________ (८२८] प्राकृतव्याकरणम् चूडल्लड चुपणीहोइसह मुद्धि कवोलि निहित्तउ। सासानल-जाल झलक्किअउ वाह-सलिल-संसित्तउ ॥ . अन्भडवंचिउ बे पयहं पेम्मु निअत्तइ जावें । सव्वासण-रिउ-संभवहो कर परिअत्ता ताव ॥ हिअइ खुडुक्कइ गोरडी गयणि घुडुका मेहु । वासा-रत्ति-पवासुअहं विसमा संकडु एहु ॥ . अम्मि पओहर वजमा निच्चु जे संमुह थन्ति । महु कन्तहो समरङ्गणइ गय-घड भजिउ जन्ति । पुत्तें जाएं कवणु गुणु अवगुणु कवणु मुएण। ..या बप्पीकी मुंहडी चम्पिजइ अवरेण ॥ तं तेत्तिउ जलु सायरहो सो तेवडु विस्थार। तिसहे निवारणु पलुवि नविपर धुडुअइ असारु ॥ ... ॥ ३९५॥ अनादौ स्वरादसंयुक्तानां क-ख-त-थ-प-फां ग-च-द-ध-ब-भाः । ८ । ४ | ३९६ । अपभ्रंशेऽपदादौ वर्तमानानां स्वरात्परेषामसंयुक्तानां कखतथपफां स्थाने यथासंख्यं गघदघवभाः प्रायो भवन्ति ॥ कस्य गः। जं दिवढं सोम रगहणु असइहिं हसिउ निसङ्कु । पिअ-माणुस-विच्छोह-गरु गिलिगिलि राहु मयफू॥ खस्य घः। अम्मीएं सत्थावत्थेहिं सुघि चिन्तिबह माणु । पिए विढे हलोहलेण को चेअइ अप्पाणु ॥ तथपफानां दधषभाः।

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