Book Title: Siddh Hemchandra Vyakaranam
Author(s): Himanshuvijay
Publisher: Anandji Kalyanji Pedhi

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Page 1028
________________ स्वोपज्ञवृतिसहितम् [ ८२३ ] अम्हे थोवा रिउ बहुअ कायर एम्ब भणन्ति । मुद्धि निहालहि गगण-यलु कइ जण जोण्ह करन्ति ॥ अम्बणु लाइव जे गया पहिअ पराया केवि । अवस न सुअहिं सुहच्छिअहिं जिवँ अम्हई तिवँ तेवि ॥ अम्हे देख | अम्हई देक्ख । वचनभेदो यथासंख्यनिवृत्यर्थः ॥ ३७६ ॥ टा-थमा मई | ८ | ४ | ३७७ । अपभ्रंशे अस्मदः दाङि अम् इत्येतैः सह मई इत्यादेशो भवति ॥ टा | मई जाणिउं पिअ विरहिअहं कवि घर होह विआलि । णवर मिअङ्कुवि हि तवह जिह दिणयरु खय-गालि ॥ डिना । परं मई बेहिं वि रण-गथाहिं ॥ अमा । मई मेल्लतो तुज् ॥ ३७७ ॥ अहिं भिसा | ८ | ४ | ३७८ । अपभ्रंशे अस्मदो भिसा सह अम्हेहिं इत्यादेशो भवति ॥ तुम्हेहिं अम्हेहिं जं किअउं ॥ ३७८ ॥ महु मज्झु ङसि - ङस्भ्याम् । ८ । ४ । ३७९ । अपभ्रंशे अस्मदो ङसिना इसा च सह प्रत्येकं महु मज्ज्ञु इत्यादेशौ भवतः ॥ महु होन्तउ गदो । मज्झु होत. उगो ॥ उसा । महु कन्तहो बे दोसडा हेल्लि म झङ्खहि आलु । देतहो हउं पर उब्वरिअ जुज्झन्तहो करवालु ॥ जह भग्गा पारक्कडां तो सहि मज्यु पिएण । अह भग्गा अम्हहं तणा तो तें मारिअडेण ॥। ३७९ ।।

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