Book Title: Shrutsagar 2019 02 Volume 05 Issue 09 Author(s): Hiren K Doshi Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर फरवरी-२०१९ आध्यात्मिक पदो आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी (गतांक से आगे) (हरिगीत छंद) जे आत्मभोगी महाजनो, वेदो खरा ते नवनवा, ते वेदनी छे मूर्तियो निरवद्य भावे मानवा; प्रामाण्यनीतिधारकोने वेद विद्या आवडी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. 105 निक्षेप साते नयवडे उपदेश तत्त्वोनो थतो, निरपेक्ष जूठा वादनो संहार वेगे थइ जतो; ते वेद वाणी नवनवी उपजे उपजशे जय करी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. 106 जगमां अनन्ती दृष्टियो, सापेक्ष नयथी जे कहे, सापेक्षथी निश्चय करी माध्यस्थ्यवृत्तिए वहे; ते ज्ञानी सघळा वेदनो मांगल्य मूर्ति जग वडी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. आत्मा अनादि काळथी, सृष्टि अनादि काळथी, इश्वर अने कर्मो अनादि काळथी समजण कथी; षट्स्थान ज्ञानी अनुभवे ते वेद विद्या मन ठरी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. 108 सर्वोन्नति शुभ जातिनी ते वेद छ ज प्रवृत्तिथी, सहु कालमां ए मान्यता, जोशो अनुभव सहु मथी; विद्यापुरे सापेक्ष दृष्टिए भली रचना करी, शुभ बुद्धिसागरसूरिए मांगल्य मालाओ वरी. 109 सं. १९७२ भाद्रपद शुकल १ॐ शान्तिः ३ 107 * . * For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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