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फरवरी-२०१९
श्रुतसागर अचगढ़े आदिनाथना चउमुख त्रिक अति सुविसाल जी। पीतल सुवरण मेलवा मण चउ देसें चउमाल जी
अरबुद० ॥१४॥ संघ भगत सहुं साचवी पडी लाभ्या श्रीठ(गुरु)राज जी। सफली यात्रा करी तिहां उतरीया काछोलीनी पाज जी अरबुद० ॥१५॥ सीरोही पउधारीया आचारीज सकल समाज जी। जंगम सुरतरु भेटतां सीधा सहुं वांछीत काज जी
अरबुद० ॥१६॥ श्रीसीरोहीना संघनी मुज महीमा वरणी न जाय जी। सह गुरुभक्ती बहुं वलीया उभी कीध सहाय जी
अरबुद० ॥१७॥ धन्नकुशल पद सेवथी वली पांमी सुबुधि पसाय जी। सिंहकुसल नित्य सुख लहे अरबुदगिरीना गुण गाय जी अरबुद० ॥१८॥ इति श्रीअर्बुदाचलगिरि स्तवनं सं.१८११ वर्षे मती माघ वदि ११ दिने ।
____पं. वसंतविजय लिखीतं ॥
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