Book Title: Shrutsagar 2019 02 Volume 05 Issue 09
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR February-2019 संपादकीय रामप्रकाश झा श्रुतसागर का यह नवीन अंक आपके करकमलों में समर्पित करते हए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है। प्रस्तुत अंक में गुरुवाणी शीर्षक के अन्तर्गत योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. की कृति “आध्यात्मिक पदो” का अन्तिम भाग गाथा १०५ से १०९ तक प्रकाशित की जा रही है। इस कृति के माध्यम से साधारण जीवों को आध्यात्मिक उपदेश देते हुए अहिंसा, सत्यपालन, आहारादि से संबंधित प्रतिबोध कराने का प्रयत्न किया गया है। द्वितीय लेख राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के प्रवचनों की पुस्तक 'Awakening' से क्रमबद्ध श्रेणी के अंतर्गत संकलित किया गया है, जिसके अन्तर्गत जीवनोपयोगी प्रसंगों का विवेचन किया गया है। ___अप्रकाशित कृति प्रकाशन के क्रम में सर्वप्रथम पंडित श्री राहुल आर. त्रिवेदी के द्वारा सम्पादित कृति “अर्बुदाचलगिरि स्तवन" प्रकाशित की जा रही है। श्री सिंहकुशल मुनि ने कुल १८ गाथाओं की इस लघु कृति में आबुतीर्थ का ऐतिहासिक महत्त्व तथा उसके प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन किया है। द्वितीय कृति के रूप में आर्य श्री मेहुलप्रभसागरजी के द्वारा सम्पादित “चार मंगल गीत" प्रकाशित किया जा रहा है। पाठक रत्ननिधान ने कुल २६ गाथाओं की इस कृति के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि अरिहंत, सिद्ध, साधु और केवली प्ररूपित धर्म ही इस लोक में मंगल स्वरूप हैं। तृतीय कृति के रूप में पंडित श्री उपेन्द्र भट्ट के द्वारा सम्पादित “जीवविचार सज्झाय" प्रकाशित किया जा रहा है। इसके कर्ता श्री पद्मविजयजी गणि ने इस कृति के माध्यम से जीवों के प्रकार से सम्बन्धित स्थूल भेदों का वर्णन किया है। जिसे एक चार्ट के माध्यम से स्पष्टरूप से समझाया गया है। चतुर्थ कृति के रूप में श्री सुयशचन्द्रविजयजी गणि के द्वारा सम्पादित “शिवजी आचार्यना बारमास” प्रकाशित किया जा रहा है। इसके कर्ता श्री धर्मसिंहजी ने इस कृति में शिवजी आचार्य तथा उनकी माता तेजलदे के बीच हुई वार्तालाप के माध्यम से बारह महीनों का वर्णन करते हुए भौतिक सुख तथा आभ्यंतर समृद्धि का तुलनात्मक वर्णन किया गया है। पुस्तक समीक्षा के अन्तर्गत श्री सर्वोदयसागरजी तथा श्री उदयरत्नसागरजी म. सा. के द्वारा सम्पादित “अचलगच्छीय ऐतिहासिक रास संग्रह" की समीक्षा प्रस्तुत की जा रही है। पुनःप्रकाशन श्रेणी के अन्तर्गत बुद्धिप्रकाश, पुस्तक ८२ के प्रथम अंक में प्रकाशित “सोलमा शतकनी गुजराती भाषा” नामक लेख का गतांक से आगे का व अन्तिम भाग प्रकाशित किया जा रहा है। इस लेख के माध्यम से सोलहवीं सदी की रचनाओं में प्रचलित गुजराती भाषा के स्वरूप तथा उच्चारणभेद का वर्णन किया गया है। हम यह आशा करते हैं कि इस अंक में संकलित सामग्रियों के द्वारा हमारे वाचक अवश्य लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से हमें अवगत कराने की कृपा करेंगे। For Private and Personal Use Only

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