Book Title: Shrutsagar 2016 12 Volume 07
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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December-2016
॥२॥
SHRUTSAGAR
____14 सकल मृषामति मनथी टालो, गंगोदकि प्रभु अंग पखालो, इम नरभव अजुआलो, सुणयो जिननी आज्ञा पालो
॥१२॥ प्रथम प्रभुना गुण मनि भावू, रसनाइं पणि पछइ सुणावू, सहुई हर्षित थावं, सुणयो बोधिबीज हुं वावु
॥१३॥ दहा समुद्रविजय धरणि प्रभु, नारि शिवा तस देवि गर्भ धरइ आणंदस्युं, पतिसंयोग लहेवि
॥१॥ राग केदारो। सुणो मेरी सजनी रजनी न जावइ रे ए ढाल । शुभ वेलाइं जिननी जायो रे, अनुक्रमि अनुकृमि यौवन पायो रे रमणी रंग न हिअडइ आयो रे, तुहइ परिणिवा प्रभुजी धायो रे,
शुभ वेलाइं जिननी जायो रे .... ॥१॥ खडोखली मांहि झीलवा नेमिजी आवइ रे, कृष्णनी राणी विवाह मनाविइ रे, छांटि पाणी रमलि करावइ रे, नेमीजी मनावा सघली आवइ रे, शुभ... ॥२॥ नेमिजीनो विवाह आज रे, जिय सरेइ तुमारां काज रे, विवाह मनाईं इंम कहइ राणी रे, मानिउ मानिउ कहितीऊ जाणी रे,शुभ...॥३॥ कुंडल मुकुट कनकना हार रे, बहिरखा बाजूबंध उदार रे, पहिरइ सुंदर चीर अपार रे, रथि बइठो श्रीनेमिकुमार रे, शुभ... ॥४॥ प्रभु शिर ऊपरि छत्र धरावइ रे, निर्मल चामरयुगल ढलावइ रे, त्रणि भुवननइ मनि जिन भावइ रे, इम परिणेवा प्रभुजी जावइ रे शुभ... ॥५॥ सुंदर सयल सजी शृंगार रे, बहिनडी लूण उतारइ सारे रे, मुझ वीरानइ हो जयकार रे, कहती हर्षितवदनाकार रे शुभ...॥६॥ मात-पिता आनंदित थाइ रे, कोकिलकंठी गोरि गाइ रे, तेहनां मुख तंबोल भराइं रे, शोक सवेनो ततखिणि जाइ रे शुभ...।।७।। साथिं आव्या दसइ दसारइ रे, सयल सग्ग वलि परिवार रे, गज रथ सघलापति तुषार रे, साथिं सेना च्यार प्रकार रे शुभ...॥८॥
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