Book Title: Shrutsagar 2016 08 Volume 03 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR August-2016 निस्पृहतानी मूर्ति अथवा आदर्शरूप बने छे तेओने अमारो नमस्कार थाओ. स्पृहा ए आत्मानो मूळ धर्म नथी पण ते तो रागरूप विभाग परिणाम छे. आत्माने आत्मरूप अवबोध्या पश्चात् आत्मामां समभाव परिणति प्रगटवा मांडे छे अने तेथी स्पृहा रूप विभाव परिणति सेववा रुचि थती नथी. आत्मा विना अन्य वस्तुओ खरेखर जड होवाथी तेमां ज्ञानी मुनिने स्पृहा प्रगटती नथी. मुक्तिने प्राप्त करनार आत्मा छे. मुनिना आत्मामां समभावनी परिणतिनुं एटलं बधुं न व्यापी जाय छे के तेथी मुनिवर सर्वत्र निस्पृह दृष्टिथी देखी शके छे. काया, उपकरणो अने बाह्य पदार्थोना संबंधमां छतां पण उत्तम मुनि खरेखरो निस्पृह होवाथी कोइ पण ठेकाणे मूर्छाथी बंधातो नथी. मूच्छापरिग्गहो वुत्तो नायपुत्तेण ताइणा (दशवैकालिक) मूर्छा ते ज परिग्रह छे एम ज्ञानपुत्र श्री महावीरदेवे कथ्युं छे. निस्पृह मुनिवरने गच्छादिक संबंधमां रहेतां अने जैन धर्मनी सेवा करतां छतां पण अन्तरथी निर्लेपपणु निःसंगपणुं रहे छे. आवा मुनिनी निस्पृहता जगतने अनुकरणीय छे. जगतमां निस्पृह दशानो प्रकाश थाओ. मनुष्य नारकी वगेरे पर्यायोने धारण करनार आत्मा तो वस्तुतः एक छे. यथैकं हेमकेयूर कुण्डलादिषु वर्तते नृनारकादिभावेषु तथाऽत्मैको निरञ्जनः ॥२४॥ कर्मणस्ते हि पर्याया, नात्मनः शुद्धसाक्षिण: कर्मक्रियास्वभावो यदात्मा तु न स्वभाववान् ॥२५॥ (अध्यात्मसार) जेम बाजुबंध अने कुंडल वगेरेमां सुवर्ण एकज छे तेम मनुष्य नारकादि पर्यायमां आत्मा एकज मनुष्य, देव, नरक अने तिर्यंच वगेरे कर्मना पर्यायो छे. वस्तुतः शुद्ध साक्षीभूत एवा आत्माना ते पर्यायो नथी. क्रिया स्वभाववाळु कर्म छे. क्रियाथी कर्म थाय छे अने कर्मथी मनुष्यादि पर्यायो थाय छे एम समजीने ज्ञानी विचारे के आत्मानो स्वभाव तेवो नथी. आत्मानो क्रियारूप स्वभाव नथी तेथी ते कर्मथी न्यारो छे. कर्मना पर्यायोमां आत्मानुं अहं ममत्व घटी शके नहि तेमज कर्म पर्यायोमां हुं आत्मा छु एवी भ्रान्ति करवी ते सत्य नथी. For Private and Personal Use Only

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