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श्रुतसागर
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अगस्त २०१६
महाराज हैं और दिशा निर्देशन तथा मुख्य प्रयत्न भारतभूषण शतावधानी मुनि श्री रत्नचंद्रजी महाराज का है। अतः शतावधानीजी को चिरस्थायी बनाने के लिए उनके नाम पर विद्याश्रम के अंदर 'शतावधानी रत्नचंद्र पुस्तकालय' की स्थापना की गई।
अब बात यह थी की इस हेतु से ऐसा स्थान पसंद करना था जो विद्याओं का विशाल केंद्र हो। काशी पंडितों की नगरी रही है और हिंदु विश्वविद्यालय ने उसके महत्त्व को बढ़ाया था । यहाँ प्राच्य और प्रतीच्य विद्याओं का सुंदर मेल होने से इसे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हो गई।
इसी प्रकार इस संस्था को भी उच्च स्थान प्राप्त हुआ। इस संस्था का नामकरण भी प्रभावित हुआ। क्योंकि काशी भगवान पार्श्वनाथ की जन्मभूमि है। इसलिए उन्हीं की पवित्र स्मृति में संस्था का नाम श्री पार्श्वनाथ विद्याश्रम रखा गया। यह नाम श्रमण संस्कृति के प्राचीन गौरवमय युग का भी स्मरण दिलाता है।
पार्श्वनाथ विद्यापीठ का लक्ष्य एवं दृष्टिकोणः
आधुनिक भाषाओं में शैक्षणिक कार्य व प्राचीन पाण्डुलिपियों के संपादन, प्रकाशन को बढ़ावा देना और जैन धर्म पर विशेष जोर देने के साथ-साथ श्रमण धर्म के आध्यात्मिक मूल्यों पर मूल शोध को प्रकाशित करने के लिए इस विद्यापीठ की स्थापना की गई।
पुरातत्त्व अवशेषों व पाण्डुलिपियों के संरक्षण हेतु तथा उच्च शिक्षा, अनुसंधान, अनेकांतवाद व अहिंसा के सिद्धांतों को बढ़ावा देना इस संस्था का मुख्य ध्ययेय रहा है।
यह विद्यापीठ जैन अध्ययन हेतु एक अत्यन्त उपयोगी विश्वकोश के रूप में जाना जाता है। वैश्विक स्तर पर इस संस्थान को विकसित करने हेतु विदेशों में भी विद्वानों के साथ उपयोगी बातचीत के साथ-साथ विचारों के संभवित पारस्परिक आदान-प्रदान करने के प्रयास किए जाते रहे हैं।
पार्श्वनाथ विद्यापीठ का समग्र दृष्टिकोण सभी विभिन्न विचारधाराओं और धर्मों के गैर निरंकुश जैन तकनीकी विषयों के सिद्धांतों का उपयोग करने के
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