________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पर्युषण दौरान १२ दिन अहिंसा प्रवर्तन के बारे में विवेकहर्ष,
परमानन्द, महानन्द, उदयहर्ष को जहाँगीर बादशाह का फरमान
अल्ला हो अकबर (ता० २६ माह फर्वरदीन, सन् ५ के करार मुजीब के फरमान की)
तमाम रक्षित राज्यों के बड़े हाकिमों, बड़े दीवानों, दीवानी के बड़े-बड़े काम करने वालों, राज्य कारोबार का बन्दोबस्त करने वालों, जागीरदारों और करोड़ियों को जानना चाहिये कि दुनिया को जितने के अभिप्राय के साथ हमारी न्यायी इच्छा ईश्वर को खुश करने में लगी हुई है और हमारे अभिप्राय को पूरा हेतु तमाम दुनिया को जिसे ईश्वर ने बनाया है—खुश करने की तरह रजू हो रहा है। उसमें भी खास करके पवित्र विचार वालों और मोक्ष धर्म वालों को जिनका ध्येय सत्य की शोध
और परमेश्वर की प्राप्ति करना है—प्रसन्न करने की ओर हम विशेष ध्यान देते हैं। इसलिए इस समय विवेकहर्ष, परमानन्द, उदयहर्ष, तपा. यति (तपागच्छ के साधु) विजयसेनसूरि, विजयदेवसूरि और नन्दिविजयजी, जिनको “खुशफहम" का खिताब है के शिष्य हैं, हमारे दरबार में थे। उन्होंने दरखास्त और विनती की कि— “यदि सारे सुरक्षित राज्य में हमारे पवित्र बारह दिन जो भावी के पर्युषण के दिन हैं तक हिंसा करने के स्थानों में हिंसा बन्द कराई जायेगी तो इससे हम सम्मानित होंगे और अनेक जीव आपके उच्च और पवित्र हक्म से बच जायेंगे इसका उत्तम फल आपको और आपके मुबारकि राज्य को मिलेगा।”
हमने शाही रेम-नजर हरेक धर्म तथा जाति के कामों में उत्साह दिलाने बल्कि प्रत्येक प्राणी को सुखी कर दुनिया का माना हुआ और मानने लायक जहाँगीरी हक्म हआ कि उल्लिखित बारह दिनों में प्रतिवर्ष हिंसा करने के स्थानों में, समस्त सुरक्षित राज्य में प्राणी हिंसा न करनी चाहिए और न करने की तैयारी ही करनी चाहिये इसके सम्बन्ध में हर साल नया हुक्म नहीं मांगना चाहिए, इसको अपना कर्त्तव्य समझना चिहिए।
नम्रतिनम्र, अबुल्खैर के लिखने से और महम्मदसैयद की नोंध से।
(कु. नीना जैन संपादित पुस्तक- 'मुगल सम्राटों की धार्मिक नीति पर जैन सन्तों (आचार्यों एवं मुनियों) का प्रभाव' मे से साभार)
For Private and Personal Use Only